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________________ प्राच्य शिलालेखों में उनकी प्रवृत्तियाँ पाई गई । वर्तमान में उपलब्ध अर्धमागधी तो मागधी, अवन्ती, प्राच्या एवं शौरसेनी की मिश्रित भाषा है। तथा शौरसेनी की सन्निकटवर्ती मागधी के रूपों वाली अर्धमागधी है, जो तीर्थंकरों की उक्त अर्धमागधी से भिन्न है। 5वीं सदी के पूर्व वर्तमान अर्धमागधी का अस्तित्त्व मिलता ही नहीं। न वह लोक-भाषा रही और न साहित्य -भाषा। 170.दिव्यध्वनि एवं कप्यूटर आधुनिक कुछ वैज्ञानिकों ने जिज्ञासावश दिव्यध्वनि एवं कम्यूटर-विज्ञान का तुलनात्मक अध्ययन किया है और इस अध्ययन के निष्कर्ष पर्याप्त उत्साहवर्धक सिद्ध हो रहे हैं। उससे उक्त दिव्यध्वनि की मान्यता के विषय में भ्रम का अन्धकार दूर होने लगा है। वैज्ञानिक ने दिव्यध्वनि को कम्यूटरीकृत ध्वनि या भाषा के समान ही वैज्ञानिक सिद्ध किया है। इस विषय में कम्प्यूटर-विज्ञान के विशेषज्ञ डॉ.वृषभप्रसाद जैन के शोध एवं चिन्तन का संक्षिप्त निष्कर्ष है कि 1-जिस प्रकार समुचित दीक्षित एवं प्रशिक्षित गणधर के बिना तीर्थंकर की दिव्यध्वनि नहीं खिरती और गणधर महाराज जब द्विभाषिए का कार्य करते हैं, तभी उसे अक्षर-भाषा का रूप प्राप्त होता है। ठीक वैसे ही संगणक के अनुप्रयोगों को सम्पादित करने के लिए हमें समुचित दीक्षित प्राक्कलनकर्ता की अपरिहार्य रूप से आवश्यकता होती है और वह समुचित प्राक्कलनकर्ता सामान्य प्रयोक्ताओं की आवश्यकताओं के सम्पादनार्थ माध्यम का कार्य करता है। 2-जिस प्रकार दिव्यध्वनि अक्षर और अनक्षर अभयरूप होती है। (अक्खाराणक्चखरप्पिया-कसायपाहुड 1/1/596/129/62/2)ठीक उसी प्रकार कम्प्यूटर की भाषा को विकसित करने के लिए इसके स्वरूप को भी अक्षरात्मक तथा अनक्षरात्मक माना गया है। 3-जिस प्रकार दिव्यध्वनि का प्रकटना विशिष्ट समय व अवस्थादि में होता है, उसी प्रकार संगणक के समुचित प्रयोग के लिए संगणक वैज्ञानिकों की मान्यता है कि उसमें भी विशिष्ट समय व विशिष्ट परिस्थितियों का ध्यान रखा जाये। 4- जिस प्रकार दिव्यध्वनि के विषय में यह मान्यता है कि वह स्वयं अर्थरूप न होकर अर्थनिरूपक होती है। इसीलिए इसमें नाना प्रकार के हेतुओं के द्वारा 136 0 प्राकृत रत्नाकर
SR No.002287
Book TitlePrakrit Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherRashtriya Prakrit Adhyayan evam Sanshodhan Samsthan
Publication Year2012
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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