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142. जैनविद्या के खोजी विद्वान् डॉ.जे. जे. बूलर . पाश्चात्य विद्वानों के लिए जैनविद्या के अध्ययन की सामग्री जुटाने वाले प्रमुख विद्वान् डॉ. जे. जे. बूलर थे। उन्होंने अपना अधिकांश जीवन भारतीय हस्तलिखित ग्रन्थों की खोज में व्यतीत किया। 1866 ई. के लगभग उन्होंने पाँच सौ जैन ग्रन्थ भारत से बर्लिन पुस्तकालय के लिए भेजे थे। जैन ग्रन्थों के अध्ययन के आधार पर डॉ. बूलर ने 1887 ई. में जैनधर्म पर जर्मन भाषा में एक पुस्तक लिखी जिसका अंग्रेजी अनुवाद 1903 ई. में लंदन से द इण्डियन सेक्टस्
ऑफ द जैन्स के नाम से प्रकाशित हुआ। इस पुस्तक में डॉ. बूलर ने कहा कि जैन धर्म भारत के बाहर अन्य देशों में भी फैला है तथा उसका उद्देश्य मनुष्य को सब प्रकार के बन्धनों से मुक्त करना रहा है । जैनविद्या के महत्वपूर्ण खोजी विद्वान् अल्बर्ड वेबर थे। उन्होंने डॉ. बूलर द्वारा जर्मनी को प्रेषित जैन ग्रन्थों का अनुशीलन कर जैन साहित्य पर महत्वपूर्ण कार्य किया है। 1882 ई. में प्रकाशित उनका शोधपूर्ण ग्रन्थ Indischen Studien ( Indian Literature) जैनविद्या पर विशेष प्रकाश डाला है। 143.जैन विश्व भारती संस्थान
जैन विश्वभारती संस्थान लाडनूं मुख्यतः जैनविद्या का अनुसंधान केन्द्र है। यहाँ जैनविद्या एवं तुलनात्मक धर्म-दर्शन, प्राकृत एवं जैनागम, अहिंसा, अणुव्रत और शांति शोध, जीवन विज्ञान, प्रेक्षाध्यान एवं योग और समाज कार्य जैसे रचनात्मक शैक्षणिक विभाग शोध की दिशा में गतिशील हैं। संस्थान जहाँ बिना सम्प्रदाय, जाति, पन्थ, धर्म और वर्ग का भेद किए सबको समान प्रशिक्षण देने की व्यवस्था करता है वहां शोधार्थी को विशेष छात्रवृत्ति देकर उसे ज्ञानार्जन की दिशा में प्रोत्साहित भी करता है। संस्थान की स्थापना के बाद अनेक प्रतिभासम्पन्न छात्र छात्राओं को स्नातक, स्नातकोत्तर एवं पीएच.डी. की उपाधियों से अलंकृत कर संस्थान गौरवान्वित हुआ है। 144. जोइन्दु
प्राकृत-अपभ्रंश साहित्य में परमात्मप्रकाश के रचयिता जोइन्दु प्राचीन आध्यात्मिक कवि हैं। श्रुतसागर ने उन्हें भट्टारक भी कहा है। टीकाकार ने उन्हें
प्राकृत रत्नाकर 0119