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डॉ. जैन को सोवियत लेण्ड नेहरू अवार्ड, गवर्नमेन्ट आफ यू. पी. अवार्ड, प्राकृत ज्ञान भारती अवार्ड आदि से सम्मानित किया गया है। डॉ. जैन स्वतन्त्रता सैनानी भी रहे हैं।
141. जैनविद्या एवं प्राकृत विभाग
सुखाड़िया विश्वविद्यालय उदयपुर के सामाजिक विज्ञान एवं मानविकी महाविद्यालय में संचालित यह जैनविद्या एवं प्राकृत विभाग 1978 से स्थापित है । अ.भा. साधुमार्गी जैन संघ बीकानेर एवं राज्य सरकार जयपुर के प्रारम्भिक सहयोग से विश्वविद्यालय में स्थापित इस विभाग में आचार्य एवं विभागाध्यक्ष डॉ. प्रेम सुमन जैन, सह आचार्य डॉ. उदयचन्द जैन एवं सह आचार्य डॉ. हुकमचन्द जैन कार्यरत रहे हैं । विगत 31 वर्षों में विभाग से अब तक बी. ए. प्राकृत के 520, एम. ए. प्राकृत के 230, एम. फिल प्राकृत के 11 एवं जैनविद्या में पीच. डी. के 55 विद्यार्थी सफलतापूर्वक शिक्षण प्राप्त कर चुके हैं । प्राकृत एवं जैनविद्या में प्रमाणपत्र एवं डिप्लोमा पाठ्यक्रमों में भी लगभग 90 विद्यार्थियों ने शिक्षण प्राप्त किया है। राज्य का यह पहला विभाग है जहाँ पर प्राकृत भाषा व साहित्य तथा जैनविद्या की सभी स्तरों के शिक्षण की व्यवस्था है। समाज में समता, समानता और संवेदना तथा राष्ट्र चेतना को विकसित करने के लिए विभाग में पालि, बौद्धधर्म एवं अहिंसा प्रमाण-पत्र पाठ्यकम भी संचालित किया
गया है ।
विभाग के प्राध्यापकों द्वारा प्राकृत एवं जैनविद्या के क्षेत्र में अब तक लगभग 150 शोधपत्रों एवं 35 स्तरीय पुस्तकों का लेखन-प्रकाशन किया गया है। विभाग के स्टॉफ ने देश-विदेश की लगभग 60 संगोष्ठियों और सम्मेलनों में भाग लिया है। विभाग से जिन शोधार्थियों ने एम. ए. अथवा पीएच. डी. उपाधियों प्राप्त की हैं वे अब विश्वविद्यालय स्तर पर विभिन्न संस्थानों में शिक्षण और शोधकार्य में संलग्न हैं। विभाग के स्टॉफ द्वारा प्राकृत भाषा के प्रचार-प्रसार हेतु प्राकृत भाषा एवं साहित्य की महत्त्वपूर्ण पुस्तकें तैयार की हैं। विभाग का स्टाफ राष्ट्रीय स्तर प्रमुख प्राकृत शोध संस्थानों की स्थापना एवं संचालन में अकादमिक सहयोग प्रदान कर रहा है ।
118 प्राकृत रत्नाकर