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________________ 127. जयपाहुड जयपाहुड निमित्तशास्त्र का ग्रंथ है। इसके कर्ता का नाम अज्ञात है। इसे जिनभाषित कहा गया है। यह ईसा की 10वीं शताब्दी के पूर्व की रचना है । प्राकृत में रचा हुआ यह ग्रंथ अतीत, अनागत आदि से सम्बन्धित नष्ट, मुष्टि, चिंता, विकल्प आदि अतिशयों का बोध कराता है। इससे लाभ-अलाभ का ज्ञान प्राप्त होता है। इसमें 378 गाथाएँ हैं जिनमें संकट विकटप्रकरण, उत्तराधरप्रकरण, अभिघात, जीवसमास, मनुष्यप्रकरण, पक्षिप्रकरण, चतुष्पद, धातुप्रकृति, धातुयोनि चिंताभेदप्रकरण तथा लेखगंडिकाधिकार में संख्याप्रमाण, कालप्रकरण, लाभगंडिका, नक्षत्रगंडिका स्ववर्ग संयोगकरण, परवर्गसंयोगकरण, सिंहावलोकितकरण, गजविलुलित, गुणाकारप्रकरण, अस्त्र विभागप्रकरण आदि से सम्बन्धित विवेचन है । 128. जार्ज ग्रियर्सन द्वारा विभिन्न प्राकृतों का अध्ययन : बीसवीं शताब्दी के प्रारम्भ में पाश्चात्य विद्वानों ने प्राकृत भाषा के विभिन्न रूपों का अध्ययन करना प्रारम्भ कर दिया था । इस समय के विद्वानों में जार्ज ग्रियर्सन का नाम विशेष उल्लेखनीय है । सामान्य-भाषा-विज्ञान के क्षेत्र में उनका जो योगदान है, उतना ही प्राकृत और अपभ्रंश भाषा के अध्ययन के क्षेत्र में भी। सन् 1906 में गियर्सन ने पैशाची प्राकृत के सम्बन्ध में द पैशाची लेंग्वेज आफ नाथ-वेस्टर्न - इण्डिया नाम से एक निबन्ध लिखा, जो लन्दन में छपा था । 1969 ई. में दिल्ली से इसका दूसरा संस्करण निकला है । पैशाची प्राकृत की उत्पत्ति एवं उसका अन्य भाषाओं के साथ क्या सम्बन्ध है, इस विषय पर आपने विशेष अध्ययन कर 1912 ई. में द प्रिवेशन आफ पैशाची एण्ड इट्स रिलेशन टु अदर लैंग्वेज नामक निबन्ध के रूप में प्रकाशित किया। 1913 ई. में आपने ढक्की प्राकृत के सम्बन्ध में अध्ययन प्रस्तुत किया- अपभ्रंश एकार्डिंग टू मार्कण्डेय एण्ड ढक्की प्राकृत । इनके अतिरिक्त गियर्सन का प्राकृत के भेद प्रभेदों के सम्बन्ध में अध्ययन निरन्तर चलता रहा है। द प्राकृत विभाषाज एन अरवेकवर्ड वाय हेमचन्द्र,प्राकृत धात्वादेश, पैशाची आदि निबन्ध प्राकृत भाषा एवं अपभ्रंश के अध्ययन के प्रति गियर्सन की अभिरुचि को प्रगट करते हैं । प्राकृत रत्नाकर 109
SR No.002287
Book TitlePrakrit Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherRashtriya Prakrit Adhyayan evam Sanshodhan Samsthan
Publication Year2012
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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