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है। विवेचन की सरलता, सरसता एवं स्पष्टता की दृष्टि से अनेक प्राचीन ऐतिहासिक एवं पौराणिक आख्यान भी उद्धृत किये हैं। सूत्रकृतांगचूर्णि में विविध दार्शनिक मतों का चिन्तन किया गया है। चूर्णियों के विषय को स्पष्ट करने हेतु प्रसंगानुसार प्राकृत की अनेक कथाएँ आई हैं, जो तत्कालीन धार्मिक, सामाजिक व लौकिक तीनों ही पक्षों को उद्घाटित करती हैं। प्राकृत भाषा के भाषा-शास्त्रीय अध्ययन की दृष्टि से भी ये चूर्णियाँ अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। 119.छक्खंण्डागमसुत्त
गिरनार स्थित चन्द्रगुफा में कठोर तपस्यारत आचार्य धरसेन वृद्धावस्था की चरम-स्थिति में थे। आचार्य इन्द्रनन्दिकृत श्रुतवतार के अनुसार उन्हें दृष्टिवादान्तर्गत द्वितीय अग्रयायणी-पूर्व की पंचमवस्तु के चतुर्थ भाग महाकम्मपयडिपाहुड का ज्ञान था। वे अपने पास सुरक्षित श्रुतांश का स्वयं ग्रथन कर पाने में सम्भवतः असमर्थ थे। उन्होंने आन्ध्रप्रदेश के वेण्णा नदी के तट पर स्थित महिमानगरी में हो रहे मुनि-सम्मेलन के प्रधान आचार्य-अध्यक्ष को एक लेख-सन्देश भेजकर उनसे दो सुबुद्ध, प्रबुद्ध एवं विनम्र शिष्यों को तत्काल ही अपने पास भेजने का अनुरोध किया। __ आचार्य गुरु के आदेश से उनके दो शिष्य, जो कि बाद में भूतबलि एवं पुष्पदंत के नाम से प्रसिद्ध हुए, लगभग 1000 कोस की यात्रा कर महिमानगरी से शीघ्र ही आचार्य धरसेन की सेवा में उपस्थित हुए। आचार्य धरसेन परीक्षाप्रधानी थे। उन्होंने दोनों शिष्यों का अन्तर्बाह्य गहन परीक्षण कर तथा उनकी सुपात्रता से प्रभावित होकर अपने पास सुरक्षित दृष्टिवादांतर्गत महाकम्मपयडिपाहुडसुत्तं नामक श्रुतांश का उन्हें अध्ययन करा दिया। उसी समय उनका अन्त समय आ गया है। अतः गुरु की समाधि के कारण दोनों शिष्य कहीं शोकाकुल न हो उठे, इसी विचार से उन्होंने उन दोनों को तत्काल ही चन्द्रगुफा छोड़कर विहार 'करने के लिए आदेश दे दिया। गुरु की आज्ञा दुर्लघ्य मानकर उन दोनों ने अनिच्छापूर्वक चन्द्रगुफा छोड़ दी। । चातुर्मास का समय समीप था। उसके संभवतः 6-7 दिन ही शेष बचे थे। अतः उतने ही समय में वे लगभग 100 कोस की यात्रा कर अंकुलेश्वर आए और
प्राकृत रत्नाकर 0103