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________________ अर्थात् - समस्त दिशाओं को चंदन से चर्चित करता हुआ, सुन्दर चकोर पक्षियों को सुख प्रदान करता हुआ, अपनी किरणों के समूह को दूर तक प्रसारित करता हुआ सरस नूतन चन्द्रमा दिखाई दे रहा है। 117.चन्द्रप्रज्ञप्ति (चंदपण्णत्ती) चन्द्रप्रज्ञप्ति विषय की दृष्टि से सूर्यप्रज्ञप्ति के निकट है। वर्तमान में जो इसका रूप मिलता है, वह अक्षरशः सूर्यप्रज्ञप्ति के समान है। केवल प्रारम्भ में मंगलाचरण तथा विषय सूचन करने वाली 18 गाथाएँ आई हैं, जो सूर्य प्रज्ञप्ति में नहीं है। विद्वानों के लिए यह बड़ी समस्या का विषय है कि ये दो अलग-अलग ग्रन्थ हैं अथवा एक ही ग्रन्थ है। इसमें चन्द्र व सूर्य के आकार, तेज, परिभ्रमण, उनकी गतियाँ, विमान आदि का निरूपण है। इस आगम में चन्द्रमा को स्वतः प्रकाशमान बताया है तथा उसके घटने-बढ़ने का कारण राहू को स्वीकार किया है। 118. चूर्णि साहित्य . आगमों के गूढ सूत्रों को अधिक स्पष्टता व विशदता से बोधगम्य करने हेतु गद्य में व्याख्या करने का क्रम चला जो चूर्णि-साहित्य के रूप में प्रचलित हुआ। चूर्णियाँ केवल प्राकृत में ही नहीं लिखी गई हैं अपितु प्राकृत के साथ-साथ इनमें संस्कृत का भी प्रयोग है। अतः चूर्णियों की भाषा मिश्र प्राकृत कहलाती है। चूर्णियों के कर्ता जिनदासगणि महत्तर माने जाते हैं। इनका समय लगभग छठीसातवीं शताब्दी माना गया है। निम्न आगमों पर चूर्णियाँ लिखी गई हैं___ 1.आचारांग 2. सूत्रकृतांग 3. व्याख्याप्रज्ञप्ति 4.जीवाजीवाभिगम 5.निशीथ 6. महानिशीथ 7. व्यवहार 8. दशाश्रुस्तस्कंध 11. ओघनियुक्ति 12. जीतकल्प 13. उत्तराध्ययन 14. आवश्यक 15. दशवैकालिक 16. नंदी 17.अनुयोगद्वार 18.जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति चूर्णि साहित्य में जैनधर्म व दर्शन के प्रमुख सिद्धान्तों का विवेचन हुआ है। नंदीचूर्णि में केवलज्ञान व केवलदर्शन के क्रम पर विशेष चर्चा की गई है। आचार्य ने केवलदर्शन के क्रमभावित्व का समर्थन किया है। आवश्यकनियुक्ति में निर्दिष्ट किये गये विषयों का विस्तार से विवेचन आवश्यकचूर्णि में किया गया 102 0 प्राकृत रत्नाकर
SR No.002287
Book TitlePrakrit Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherRashtriya Prakrit Adhyayan evam Sanshodhan Samsthan
Publication Year2012
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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