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________________ उन्होंने वहीं चातुर्मास किया। चातुर्मास समाप्त होते ही आचार्य पुष्पदन्त ने तो वनवासी प्रदेश (कर्नाटक) में विहार किया और आचार्य भूतबलि वहाँ से तमिल-देश पहुँचे। गुरु-परम्परा से प्राप्त श्रुतांश के आधार पर जिस साहित्य का उन्होंने ग्रथन किया, वह खण्ड-सिद्धान्त अथवा सतकम्मपाहुड (सत्कर्म प्राभृत) अथवा महाकम्मपयडिपाहुड (महाकर्मप्रभृति पाहुड) कहलाया। चूंकि वर्ण्य-विषय छह खण्डों में विभक्त था, अतः वह छक्खंडागम (षट्खंडाग़म)के नाम से भी प्रसिद्ध हुआ और आगे चलकर उसी नाम से वह लोकप्रिय भी हुआ। छक्खंडागम (षट्खंडागम)के प्रथम जीवट्ठाण-खंड में 2375 सूत्र हैं, जो विषयानुक्रम से 17 अधिकारों अर्थात् अध्यायों में विभक्त हैं, तथा इसमें जीव के गुण-धर्मो तथा उनकी विविध दशाओं का सत् संख्या आदि8 प्ररूपणाओं के द्वारा वर्णन किया गया है। 120. छन्दोलक्षण छन्दोलक्षण (जिनप्रभीय टीका के अंतर्गत) में नन्दिषेणकृत अजितशान्तिस्तत्व पर जिनप्रभीय टीका के अंतर्गत छंद के लक्षणों का प्रतिपादन किया है। इस टीका में कविदर्पण का उल्लेख मिलता है, नन्दिषेण ने अजितशांतिस्तव में 25 विभिन्न छन्दों का प्रयोग किया है। 121. छंदशास्त्र जिस प्रकार भाषा को सार्थक बनाने के लिए व्याकरण की आवश्यकता होती है, उसी प्रकार काव्य की सार्थकता के लिए छंद-प्रयोग अपेक्षित है। विषयगत मनोभावों के संचार के लिए तथा कविता में संतुलन बनाये रखने हेतु काव्य में छंद का व्यवहार किया जाता है। मनुष्य को मनुष्य के प्रति संवेदनशील बनाने का सबसे प्रमुख साधन छंद हैं। छंद, ताल, तुक एवं स्वर सम्पूर्ण मनुष्य को एक करते हैं तथा इसके आधार पर मनुष्य का भाव स्वाभाविक रूप से दूसरे तक पहुँच जाता है। स्पष्ट है कि छंद काव्य का अटूट अंग है। प्राकृत साहित्य में छन्द परम्परा का विकास न केवल स्वतंत्र रूप में हुआ, अपितु छंद विषयक प्राकृत की उपलब्धियाँ महत्त्वपूर्ण हैं। प्राकृत भाषा का सीधा सम्बन्ध लोक जीवन से था, अतः यहाँ नृत्य एवं संगीत के आधार पर छंदों का विकास हुआ। प्राकृत में ही 1040 प्राकृत रत्नाकर
SR No.002287
Book TitlePrakrit Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherRashtriya Prakrit Adhyayan evam Sanshodhan Samsthan
Publication Year2012
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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