________________
२८.२ सिद्धमुद्रा : मंत्र : ॐ ह्रीं णमो सिध्धाणं विधि : मंत्र का उच्चारण करके दोनो हाथो की अंगुलियों के अग्रभाग और हथेलियों को मिलाकर थोडा सा दबाव देते हुए श्वास भर कर हाथो को नमस्कार मुद्रा में ही उपर सीधा ले जाते हुए हथेलियों को खोलकर सिद्धशिला का आकार देते हुए, दोनो मणिबंध को एक दूसरे से मिलाकर श्वास को कुछ सेकंड रोके फिर धीरेधीरे श्वास छोडते हुए पूर्वस्थिति में आ जाये ।। आध्यात्मिक लाभ : • सिद्धमुद्रा पूर्ण स्वतंत्रता का प्रतीक है, इसलिए इस मुद्रा के अभ्यास से स्वतंत्र
व्यक्तित्व का निर्माण होता है। सिध्धि के द्वार खुलते है। अप्रमादकेन्द्र (कान) पर विशेष प्रभाव होने से प्रमाद दूर होकर स्फूर्ति और
जागृति आती है। शारीरिक लाभ : • अर्हमुद्रा के सभी लाभ मिलते है ।
इनके अलावा हथेली, हाथ, मणिबंध में लचीलापन आता है और वे पुष्ट बनते हैं।