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२८.१ अहमुद्रा :
मंत्र : ॐ ह्रीं णमो अरिहंताणं विधि : मंत्र बोलकर नमस्कार की स्थिति में दोनों हाथो की सभी अंगुलियों के अग्रभाग और दोनों हथेलियों को परस्पर मिलाकर थोडा सा दबाव देते हुए, श्वास भरकर, वही स्थिति में हाथों को कान के स्पर्श करते हुए हो सके इतना ऊँचा उठाकर श्वास थोडी सेकंड रोके, और फिर धीरेधीरे श्वास छोड़ते हुए नमस्कार मुद्रा में ही हाथो को आनंदकेन्द्र के पास पूर्वस्थिति में रखें । आध्यात्मिक लाभ : • अर्हमुद्रा से वीतरागभाव का निर्माण होता है, जिस से प्रिय-अप्रिय, राग-द्वेष के
भाव दूर होकर स्थितप्रज्ञता आती है।
अर्हता माने अनंत शक्ति बढ़ती है। शारीरिक लाभ : • पेट, छाती, पसलियाँ और मेरुदंड की सक्रियता बढती है ।
अड्रीनल और थायमस ग्रंथि के स्त्राव संतुलित होते हैं।
अंगुलियाँ, हथेली, मणीबंध और कंधे सशक्त बनते हैं। • शरीर के विजातीय द्रव्यों का विसर्जन होता है। • जडता और आलस्य दूर होकर स्फूर्ति का अनुभव होता हैं ।
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