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पंच परमेष्ठी नमस्कार मुद्राएँ शरीर की मुद्राओं से अतंर के भाव प्रगट होते हैं । विद्यायक मुद्राओं के अभ्यास से विद्यायक भाव का निर्माण होता है और निषेधात्मक भावो से दूर होकर इच्छित चरित्र का निर्माण होता है । पंच परमेष्ठी नमस्कार मुद्राओं से व्यक्ति अपने सामर्थ्य का विकास कर सकते है । हर एक व्यक्ति के अंदर बीज के रुप में अर्हता समायी हुई है । यह अर्हता माने अनंत ज्ञान, अनंत आनंद और अनंत शक्ति । इस अर्हता के जागरण के लिए पंच परमेष्ठी मुद्राएं एक सक्षम उपाय है ।
यह मुद्राएं बच्चे को नियमित करवाने से उनका चरित्र उच्च कक्षा का बनता है, शारीरिक दृष्टि से शरीर मजबूत और शक्तिशाली बनता है और विद्या ग्रहण करने की क्षमता बढ़ती है। पंच परमेष्ठी की पाँच मुद्राओं के नाम है :
१) अर्हमुद्रा २) सिद्ध मुद्रा ३) आचार्य मुद्रा ४) उपाध्याय मुद्रा
५) मुनि मुद्रा। यह पाँचो मुद्राऐं पद्मासन, वज्रासन के सुखासन में कर सकते हैं । खडे होकर भी कर सकते है और इससे ज्यादा लाभ होता है।
यह मुद्राएं करने के वक्त शरीर स्थिर, सीधा और तनावमुक्त रखें ।
हरएक मुद्रा के शुरु करने के वक्त दोनो हाथों को नमस्कार मुद्रा में, आनंदकेन्द्र हृदय के पास रखें । चित्त को एकाग्र कर के श्वास छोडते वक्त लयबद्ध गुंजारव सहित हरएक मुद्रा के दिये हुए मंत्र या ॐ या अपने इच्छानुसार मंत्र का उच्चारण करें।
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