SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 53
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २८. ३ आचार्य मुद्रा : मंत्र : ॐ ह्रीं णमो आयरियाणं विधि : मंत्र का उच्चारण करते हुए दोनो हाथ कंधे के पास रखते हुए दोनों हथेलियाँ खोलकर, अंगूठे का स्पर्श कंधे को हो इस तरह रखकर श्वास थोडी सेकंड रोक कर और फिर धीरे-धीरे श्वास छोड़ते हुए हाथ पूर्वस्थिति में लायें । आध्यात्मिक लाभ : आचार्य मुद्रा से श्रध्धा और समर्पण के भाव प्रगट होते हैं। हाथ जोडते हुए विनय और श्रध्धा के भाव और हाथ खोलते हुए समर्पण के भाव प्रगट होते है । यह मुद्रा के अभ्यास से शुध्ध आचरण के प्रति जागृतता आती है । आत्मविश्वास बढकर निर्भयता के भाव का निर्माण होता है । शारीरिक लाभ : इस मुद्रा से कंधे, छाती, पीठ और श्वसन तंत्र के सभी अवयव क्रियाशील बनते हैं । हथेलियाँ, अंगुलियाँ और हाथ की सभी मांसपेशियाँ सक्रिय बनती हैं। ४६
SR No.002286
Book TitleMudra Vignan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNilam P Sanghvi
PublisherPradip Sanghvi
Publication Year
Total Pages66
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy