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________________ १८ बंधक मुद्रा : दाहिने हाथ के अंगूठे को बायें हाथ के अंगूठे से पकड में लेकर दाहिना और बाया दोनो अंगूठे बाँये हाथ की मुठ्ठी से बंद करके, दाहिने हाथ की चारो अंगुलियाँ बायें हाथ की मुठ्ठी पर (बाये हाथ की तर्जनी के उपर) रखते हुए बंधकमुद्रा बनती है । इसमें बायें हाथ की पाँचो अंगुलियाँ और दाहिना अंगूठा बायें हाथ की मुट्ठी में बंद रहते है और दाहिने हाथकी चारों अंगुलियाँ इस तरह से बाये हाथ की मुठ्ठी पर रहती है कि इनके नाखून आसमान की ओर रहते है । यह मुद्रा वज्रासन या पद्मासन में बैठकर कलींग-कलींग बीजमंत्र के ध्वनि उच्चारण के साथ करने से पूरा लाभ मिलता है। यह मुद्रा सूर्योदय के पहले या सूर्यास्त के बाद ही करनी है क्योंकि इससे शरीर की उष्णता बढती है इसलिये सूर्य की हाजरी में नहीं करनी है। लाभ : शरीर की उष्णता-ऊर्जा बढती है इसलिए शक्ति मिलती है। हृदय के कई रोग में बहुत लाभदायक है । इससे हृदय को इतनी शक्ति मिलती है कि नियमित ५ से १० मिनट करने से हृदय की कोई भी तकलीफ दूर होती है। उच्च रक्त चाप नियंत्रण में आता है। यह मुद्रा अंर्तमूर्हत में करने से अद्भूत शांति और शरीर में नई शक्ति का संचार अनुभव होता है । आध्यात्मिक दिशा में आगे बढ़ सकते है । ३०
SR No.002286
Book TitleMudra Vignan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNilam P Sanghvi
PublisherPradip Sanghvi
Publication Year
Total Pages66
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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