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________________ १९ पुस्तक मुद्रा : दोनों हाथो की चारो अंगुलियों के अग्रभाग को हथेली के अंगूठे का नीचे के भागपर (शुक्र पर्वत पर) इस तरह रखे कि तर्जनी का अग्रभाग अंगूठे के मूल पर लगे और तीनो, मध्यमा, अनामिका और कनिष्ठिका उसके बराबर लगी हुई रहे और अंगूठा तर्जनी के मुडे हुए भाग पर रहे, चारो अंगुलियो के नाखून आसमान की और रखते हुए पुस्तक मुद्रा बनती है। लाभ : • इस मुद्रा करने से अंगुलियाँ के अग्रभाग हथेली पर दबने से हथेली में धडकन शुरू होते हुए अंगुलियों मे भी धडकन का अनुभव होता है । इस मुद्रा का मस्तिष्क और उसके ज्ञानतंतु के साथ संबंध होने से मस्तिष्क के सुक्ष्म कोषे क्रियावंत बनते है जिससे एकाग्रता सधती है। विद्यार्थियों के लिए यह मुद्रा बहुत महत्त्व की है क्योंकि इससे वे एकाग्र बनकर पढ़ने में मन लगा सकते है और कम समय में ज्यादा विद्या ग्रहण कर सकते है। कोई भी पुस्तक (धार्मिक या कठिन हो ) जो जल्दी समझ में न आती हो तब पुस्तक मुद्रा करने के बाद पढ़ने से तुरंत समझ में आ जाता है। एकाग्रता और ज्ञान पाने की क्षमता का विकास होता है ।
SR No.002286
Book TitleMudra Vignan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNilam P Sanghvi
PublisherPradip Sanghvi
Publication Year
Total Pages66
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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