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________________ १७ ध्यान मुद्रा : पद्मासन में बैठकर अगर न हो सके तो सुखासन में बैठकर बायी हथेली पर दाहिनी हथेली रखकर दोनों अंगूठे एक दूसरे से मिलाकर नाभि के नीचे दोनो हाथ स्थापित करके ध्यानमुद्रा या वितराग मुद्रा बनती है । इस मुद्रा में दोनों अंगूठे मिलाने से अग्नि - उर्जा उत्पन्न होती है, अगर ध्यान में यह मुद्रा करने से ज्यादा उर्जा का अनुभव हो तो अंगूठे एक दूसरे को न मिलाते हुए एक अंगूठे पर दूसरे अंगूठे को रख सकते है । लाभ • ध्यान करते वक्त यह मुद्रा का प्रयोग खास तौर से सहायक है क्योंकि इससे चंचलता दूर होकर एकाग्रता आती है और ध्यान में उच्च भूमिका जैसे समाधि और आत्मसाक्षात्कार तक पहुँचने के लिए श्रेष्ठ मुद्रा है । सात्त्विक और वीतरागभाव और सात्त्विक विचारो का निर्माण होने से व्यक्ति का आभामंडल (ओरा) तेजोवलय, प्रभावशाली और शुद्ध बनता है। इस मुद्रा के प्रयोगसे शरीरके चारों ओर एक कवच का निर्माण होता है जिससे अनिष्ट तत्त्व साधना में बाधक नहीं बन सकते। पद्मासन में यह मुद्रा करने से मेरुदंड सीधा रहता है, जिससे सुषुम्ना नाडीका प्रवाह शुरू होकर व्यक्ति को उर्ध्वगामी बनाता है । इस मुद्रा से क्रोधी स्वभाव, शांत स्वभाव में परिवर्तन होता है । • मानसिक शांति मिलती है और विपरित संयोगो में मन स्वस्थ रहता है । स्नायुमंडल और शरीर के दूसरे अवयव भी सशक्त बनते हैं । २९
SR No.002286
Book TitleMudra Vignan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNilam P Sanghvi
PublisherPradip Sanghvi
Publication Year
Total Pages66
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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