SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 35
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १६ सहज शंखमुद्रा : दोनों हाथ की सभी अंगुलियाँ एक दुसरे में फँसाकर, दोनो हथेली परस्पर दबाते हुए, दोनो अंगूठे तर्जनी पर रखकर हल्का दबाव देते हुए एक दूसरे के साथ रखकर सहज शंखमुद्रा बनती है । सहज शंखमुद्रा वज्रासन में बैठकर मूलबंध लगाकर (गुदा के स्नायु अंदरकी ओर खिंचते हुए) १० मिनट प्राणायाम के साथ करने से विशेष और अवश्य लाभ होता है। लाभ : • वज्रासन, मूलबंध और सहजशंखमुद्रा साथ करने से शरीर की संवेदना और प्रकंपनो का अनुभव होता है। शंखिनी नाडी शुरु होती है जिससे शक्ति उर्ध्वगामी बनती है। स्तंभनशक्ति और ब्रह्मचर्य की पुष्टी होती है । बालक होने की शक्यता बढ़ती है। गुदा के स्नायु की कोई भी तकलीफ में लाभदायक है । • शंखमुद्रा के जैसे ही इससे भी शंख की ध्वनि की आवाज निकलती है और इसके फायदे होते हैं। वचन, आवाज, पाचनशक्ति, पेट और आंत संबंधी सभी फायदे जो शंखमुद्रा से मिलते है वह सभी, इस मुद्रा से भी मिलते हैं। • मेरुदंड सीधा रहता है और इसका लचीलापन कायम रहता है ।
SR No.002286
Book TitleMudra Vignan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNilam P Sanghvi
PublisherPradip Sanghvi
Publication Year
Total Pages66
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy