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________________ ७ सूर्यमुद्रा : अनामिका के अग्रभाग को अंगूठे के मूल पर लगाकर अंगूठे से अनामिका पर हल्का सा दबाव देते हुए शेष अंगुलियाँ सीधी रखते हुए सूर्यमुद्रा बनती है । पद्मासन या सिध्धासन में ज्यादा लाभ होता है । लाभ : अंगूठे के अग्नितत्व की उर्जा, अनामिका के पृथ्वी तत्त्व को ग्रहण करके उसका संग्रह करती है इसलिए सूर्यमुद्रा से शीघ्र शक्ति का अनुभव होता है । • • • · ● • ५ से १५ मिनट करने से सूर्यस्वर शुरू होता है । थायरोईड ग्रंथि के स्त्राव का संतुलन होता है। • शरीर का भारीपन दूर होकर शरीर सप्रमाण बनता है । ज्यादा वजन को कम करने में सहायता मिलती है । शारीरिक और मानसिक तनाव दूर होते हैं । इस मुद्रा से सूर्यस्वर शुरू होकर अग्नितत्त्व बढता है, जिससे कफ के कोई भी रोग जैसे दम, सरदी, निमोनिया, टी. बी. प्लुरसी, सायनस और सरदी में `उपयोगी है । यह सभी रोग में सूर्यमुद्रा के साथ लिंगमुद्रा करने से ज्यादा फायदा मिलता है I इस मुद्रा के नियमित अभ्यास से पाचन शक्ति का विकास होता है और पुरानी कब्जकी तकलीफ दूर होती है । उर्जा और उष्णतामान पूरे शरीर में फैलते हैं। नोट : ज्यादा दुर्बल शरीरवाले इस मुद्रा का प्रयोग न करें । १३
SR No.002286
Book TitleMudra Vignan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNilam P Sanghvi
PublisherPradip Sanghvi
Publication Year
Total Pages66
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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