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________________ ६ आदिति मुद्रा : अंगूठे के अग्रभाग को अनामिका के मूल पर रखकर, तर्जनी, मध्यमा, अनामिका और कनिष्ठिका, इन चारों अंगुलियों को एक दूसरे के पास सीधी रखते हुए आदिति मुद्रा बनती है । अंगूठा थोडा सा तिरछा रहेगा। लाभ : उबासी और छींक रोकी जा सकती है इसलिए साधना करते वख्त अवरोध दूर होता है। जिन्हें सुबह उठते ही एक साथ बहुत छींक आती हो या नियमित छींक की तकलीफ रहती हो तो इस मुद्रा से यह तकलीफ दूर होती हैं। आदिति मुद्रा, दोनों हाथ पास में रखकर भी बनायी जाती है यानि कि दोनो हाथों से आदिति मुद्रा करके अंजलि बनाकर देवों को आवाहन दिया जाता है। सत्संग करते समय यह मुद्रा करने से सत्संग का ज्यादा लाभ मिलता है। जैन तीर्थंकर की अधिकतर प्रतिमाएँ इस मुद्रा में पायी जाती हैं इसलिए इसे तीर्थकरमुद्रा भी कहते हैं । इस मुद्रा से ध्यान में लीन बन सकते हैं । यह मुद्रा करके हथेली के पीछे के हिस्से को आसमान की ओर रखने से स्थापिनी मुद्रा बनती है । भगवान की प्रतिमा की स्थापना करते समय इस मुद्रा का प्रयोग किया जाता है।
SR No.002286
Book TitleMudra Vignan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNilam P Sanghvi
PublisherPradip Sanghvi
Publication Year
Total Pages66
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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