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५ पृथ्वीमुद्रा :
अनामिका अंगुली के अग्रभाग को अंगूठे के अग्रभाग से मिलाकर शेष तीनों अंगुलियाँ तर्जनी, मध्यमा, और कनिष्ठिका सीधी रखकर पृथ्वीमुद्रा बनती है ।
लाभ :
पृथ्वी तत्त्वके कमी से जो शारीरिक दुबर्लता और उसके हिसाब से होनेवाले रोग में यह मुद्रा उपयोगी है ।
शारीरिक कमजोरी दूर होकर, इस मुद्रासे व्यक्ति सबल और सप्रमाण बनता
है।
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शक्ति, कान्ति, तेज और तेजस्विता बढ़ती है । बाजार के कोई भी टोनिक से ज्यादा असरकारक है ।
नियमित अभ्यास से, सूक्ष्म तत्त्वो में परिवर्तन होते हैं इसलिए नई दिशा मिलती है और अध्यात्मिकता की ओर जा सकते हैं
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इस मुद्रा से आंतरिक प्रसन्नता, स्फूर्ति, स्वस्थता, उदारता और विचारशीलता बढ़ती है और विशाल हृदयी बन सकते हैं ।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार बृहस्पति ग्रह को फायदा होता है और बौद्धिक क्षमता और स्मृति का विकास होता है ।
अंगूठे की तरह अनामिका में भी विशेष विद्युतशक्ति होने के कारण इस मुद्रा से शक्ति मिलती है और इसीलिए इस अंगुली से तिलक करके शक्ति को प्रवाहित किया जाता है ।
नोट : इस मुद्रा से शक्ति बढती है इसलिए बढी हुई शक्ति का दुरुपयोग न हो इसका ध्यान रहे ।
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