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श्राद्धविधि प्रकरणम्
87 पच्चक्खाण आदि का भंग होना संभव है। अशनादि चार का विभाग :
अशन, पान, खादिम, स्वादिम इत्यादि का विभाग इस प्रकार है। अन्न खाजा, मक्खन, बड़ा आदि पक्वान्न, मांडी, सत्तू आदि सर्व जो कुछ क्षुधा का शीघ्र उपशमन करते हैं, उन्हें अशन कहते हैं। (१) छाछ की आस, पानी, मद्य, कांजी का पानी आदि सर्व पान हैं। (२) सब जाति के फल, सांटा, पोहे, सुखडी (पंचमेल मिठाई) आदि खाद्य हैं। (३) तथा सोंठ, हरडे, पीपल, मिर्च, जीरा, अजवान, जायफल, जावित्री, कसेरू, कत्था,खदिरवडिका, मुल्हेटी,तज,तमालपत्र, इलायची, लौंग,बायबिडंग,विडनमक, अजमोद, कुलिंजन, पीपलामूल, कबाबचीनी, कचूर, मोथा, कपूर, संचल, हरड़े, बहेड़ा, धमासा, खेर, खेजड़ा आदि की छाल, नागरवेल के पान, सुपारी, हिंग्वष्टक, हिंगुतेवीसा, पंचकोल, पुष्करमूल, जवासा, बावची, तुलसी, कपूरीकंद इत्यादिक स्वादिम हैं। (४) भाष्य और प्रवचनसारोद्धार इन दो ग्रंथों के अभिप्राय से जीरा स्वाद्य है, और कल्पवृत्ति के अभिप्राय से खाद्य है। अजमान भी खाद्य है, ऐसा बहुत से कहते हैं। सर्व स्वाद्य वस्तु और इलायची कपूर इत्यादिक का जल दुविहार पच्चक्खाण में ग्राह्य है। बेसन, सौंफ, सुवा, कोठवडी, आमला, आंबागोली, कोठपत्र, नीम्बूपत्र, इत्यादि खाद्य होने से दुविहार पच्चक्खाण में अग्राह्य है। तिविहार में तो केवल जल ग्राह्य है। फूंकाजल तथा सीकरी, कपूर, इलायची, कत्था, खादिर चूर्ण, कसेरू, पाटल, इत्यादिक का जल निथरा हुआ अथवा छाना हुआ हो तभी ग्राह्य है, अन्यथा
नहीं।
___शास्त्र में शहद, गुड़, शक्कर, मिश्री, आदि खाद्य में और द्राक्ष, मिश्री इत्यादिक का जल तथा [छाछ की आस] आदि पान में कहा है। परन्तु ये दुविहार आदि में ग्राह्य नहीं हैं। नागपुरीयगच्छ के पच्चक्खाण भाष्य में कहा है कि, जो भी शास्त्र में द्राक्षपानकादिक पान में और गुड़ आदि स्वादिम में कहा है, तो भी वे तृप्तिकारक होने से तिविहारादिक उपवास आदि प्रत्याख्यान एवं रात के दुविहार तिविहार प्रत्याख्यान में अनाचरित हैं, इसलिए पूर्वाचार्यों ने नहीं लिया। स्वस्त्री से रतिक्रीड़ा करने से चौविहार का भंग नहीं होता, परन्तु बालादिक के ओष्ठ, गाल इत्यादि का चुम्बन करने से (चौविहारतिविहार) भंग हो जाता है। दुविहार में तो स्वस्त्री से रतिक्रीड़ा तथा बालादिक का चुम्बन भी ग्राह्य है। चौविहारादि पच्चक्खाण तो कवलाहार का ही है। लोमादिक आहार का नहीं। ऐसा न हो तो शरीर में तैल लगाने से तथा फोडे, फुसी ऊपर पुल्टिस बांधने से भी अनुक्रम से आंबिल तथा उपवास का भंग होने का प्रसंग आवे, ऐसा मानने का व्यवहार भी नहीं है। कदाचित् कोई ऐसा माने तो, लोमाहार निरन्तर चलने का संभव होने से पच्चक्खाण के अभाव का प्रसंग आ जाता है। अणाहार वस्तु :
अणाहार वस्तुएं व्यवहार में ली गयी हैं, वे इस प्रकार-नीम पंचांग (जड़,छाल,