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________________ 86 श्राद्धविधि प्रकरणम् आसक्त था, वह केवल एक ही बार ग्रंथिसहित पच्चक्खाण करने से कपर्दी यक्ष हुआ। कहा है कि जे निच्चमप्पमत्ता, गंठिंबंधंति गंठिसहिअस्स। सग्गापवग्गसुक्खं, तेहिं निबद्धं सगंठिमि ।।१।। जो पुरुष प्रमाद रहित होकर ग्रंथिसहित पच्चक्खाण की ग्रंथि (गांठ) बांधते हैं, उन्होंने मानों स्वर्गका और मोक्ष का सुख अपनी गांठ में बांध लिया है। जो धन्य पुरुष भूले बिना नवकार की गणना करके ग्रंथसहित पच्चक्खाण की ग्रंथि छोड़ते हैं वे अपने कर्मों की गांठ छोड़ते हैं। जो मुक्ति पाने की इच्छा हो तो इस प्रकार पच्चक्खाणकर प्रमाद छोड़ने का अभ्यास करना चाहिए। सिद्धान्तज्ञानी पुरुष इसका पुण्य उपवास के समान कहते हैं। जो पुरुष रात्रि में चौविहार पच्चक्खाण और दिन में ग्रंथिसहित पच्चक्खाण ले एकस्थान पर बैठ एकबार भोजन तथा तांबूल आदि भक्षण करना, और पश्चात् विधिपूर्वक मुख शुद्धि करना, इस प्रकार एकाशन करे, उसे एक मास में उन्तीस चौविहार (तिविहार) उपवास करने का फल प्राप्त होता है। भुंजइ अणंतरेणं, दुन्नि उ वेलाउ जो नियोगेणं। सो पावइ उववासा, अट्ठावीसं तु मासेणं ।।१।। वैसे ही उपरोक्त विधि के अनुसार रात्रि में चौविहार पच्चक्खाण और दिन में बियासणा करे तो उसे एक मास में अट्ठावीस चौविहार (तिविहार) उपवास करने का फल प्राप्त होता है। ऐसा वृद्ध लोग कहते हैं। भोजन, तांबूल, पानी आदि वापरते नित्य दो-दो घड़ी लगना संभव है, इस प्रकार गिनते एकाशन करनेवाले की साठ घड़ी और बियासणा करनेवाले की एक सौ बीस घड़ी एक महिने के अन्दर खाने-पीने में जाती है (ठाणपाणी करे तो)। वह निकालकर शेष क्रमशः उन्तीस, अट्ठाइस दिन चौविहार उपवास में गिना जाना स्पष्ट है। पद्मचरित्र में कहा है कि जो मनुष्य लगातार बियासणे का पच्चक्खाण लेकर प्रतिदिन दो बार भोजन करे, वह एक मास में अट्ठाइस उपवास का फल पाता है। जो मनुष्य दो घड़ी तक प्रतिदिन चौविहार पच्चक्खाण करे, वह एक मास में एक उपवास का फल पाता है, और उस (फल) को देवलोक में भोगता है। किसी अन्य देवता की भक्ति करनेवाला जीव तपस्या से जो देवलोक में दशहजार वर्ष की स्थिति पावे, तो जिनधर्मी जीव जिनेश्वर की कही हुई उतनी ही तपस्या से करोड़ पल्योपम की स्थिति पाता है। इस प्रकार यथाशक्ति दो-दो घड़ी चौविहार बढ़ावे, और उसी अनुसार नित्य करे तो उसे एक मास में पच्चक्खाण के काल-मान की वृद्धि के प्रमाण से उपवास, छट्ट, अट्ठम इत्यादिक शास्त्रोक्त फल होता है। इस युक्ति से ग्रंथिसहित पच्चक्खाण का उपरोक्त फल विचार लेना चाहिए। ग्रहण किये हुए सर्व पच्चक्खाण का बार-बार स्मरण करना। पच्चक्खाण की अपनीअपनी काल मर्यादा पूरी होते ही मेरा अमुक पच्चक्खाण पूर्ण हुआ, ऐसा विचार करना। भोजन के समय भी पच्चक्खाण का स्मरण करना। ऐसा न करने से कदाचित्
SR No.002285
Book TitleShraddhvidhi Prakaranam Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherJayanandvijay
Publication Year2005
Total Pages400
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size8 MB
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