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________________ 88 श्राद्धविधि प्रकरणम् पत्र, फूल, फल), मूत्र, गिलोय, कुटकी (कडु), चिरायता (करियातु), अतिविष, कूड़ा, चित्रक, चंदन, रक्षा (राख) हलदी, रोहिणी, उपलेट, वच, त्रिफला, बबूल की छाल, धमासा, नाय, असगंध, रिंगणी (उभी-बैठी), एलुवा ( आलीयो ), गुग्गुल, हरड़ेदल, वउणी(कपास का वृक्ष), बोर, छालमूल, कथेरीमूल, केरड़ामूल, पंवाड, बोड़थेरी, चीड़, आठी, मजीठ, बोल, बीउ (काष्ठ), घीकुंवार, कुंदरू, इत्यादिक अनिष्ट स्वाद की वस्तु रोगादि संकट होवे तो चौविहार में भी ग्राह्य है। एकांगिक आहारादि : श्रीकल्प में तथा उसकी वृत्ति में चौथे खंड में शिष्य पूछता है कि, आहार और अनाहार वस्तु का लक्षण क्या है? आचार्य कहते हैं - ओदन (भात) आदि शुद्ध अकेला ही क्षुधा का शमन करे, उसे आहार कहते हैं। वह अशन, पान, खादिम तथा स्वादिम इन भेदों से चार प्रकार का है। तथा इस आहार में दूसरी जो वस्तुएं पड़ती हैं, , वे भी आहार ही कहलाती हैं। अब एकांगिक चतुर्विध आहार की व्याख्या करते हैं। ओदन (भात) एकांगिक अर्थात् शुद्ध अकेला ही क्षुधा का नाश करता है, इसलिए यह अशन आहाररूप प्रथम भेद जानों (१) । छाछ, जल, मद्यादिक वस्तु भी एकांगिक अर्थात् शुद्ध अकेली क्षुधा का नाश करती है, अतएव यह पानआहाररूप दूसरा भेद है (२) । फल, मांस इत्यादिक वस्तु एकांगिक अर्थात् शुद्ध अकेली ही क्षुधा का नाश करती है, इसलिए यह खादिम आहाररूप तीसरा भेद है (३) । शहद, फाणित ( अग्नि पर पकाकर गाढ़ा किया हुआ सांठे का रस, राब) इत्यादि वस्तु एकांगिक अर्थात् शुद्ध अकेली ही क्षुधा का नाश कर सकती है। इसलिए यह स्वादिम आहाररूप चौथा भेद जानों (४) । आहार में जो दूसरी वस्तु पड़ती है, वह भी आहार कहलाता है, ऐसा जो कहा, उसकी व्याख्या इस प्रकार है - जो लवणादिक एकांगिक वस्तु क्षुधा की शान्ति करने को समर्थ न हो, परन्तु चतुर्विध आहार में काम आती हो, वह वस्तु चाहे आहार में मिश्रित हो अथवा पृथक् हो, तो भी आहार में ही गिनी जाती है। ओदन (भात) आदि अशन में लवण, हींग, जीरा इत्यादिक वस्तु आती है, पानी आदि पान में कपूर आदि वस्तु आती हैं, आम आदि के फलरूप खादिम में नीमक आदि वस्तु आती है तथा मूंगफली तथा सौंठ आदि खादिम में गुड़ इत्यादि वस्तु आती है। ये अंदर आने वाली कपूरादि वस्तुएं स्वयं क्षुधा का शमन नहीं कर सकतीं, तथापि क्षुधा का शमन करनेवाले आहार को मदद करती हैं, इसलिए इनको भी आहार में ही गिना है। इस चतुर्विध आहार को छोड़कर शेष सब वस्तुएं अनाहार कहलाती हैं। अथवा क्षुधापीड़ित जीव जो कुछ पेट ता है, वह सर्व आहार है। औषधि आदि का विकल्प है, याने औषधि में कुछ तो आहार है और कुछ अनाहार है । उसमें मिश्री और गुड़ आदि औषधि आहार में गिनी हैं और सर्प के काटे हुए मनुष्य को माटी आदि औषधी दी जाती है वे अनाहार हैं। अथवा जो वस्तु क्षुधा से पीड़ित मनुष्य को खाने में स्वादु जान पड़े वे सर्व आहार हैं। और 'मैं यह वस्तु भक्षण करूं' ऐसी किसीको खाने की इच्छा न हो, तथा जो जीभ का
SR No.002285
Book TitleShraddhvidhi Prakaranam Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherJayanandvijay
Publication Year2005
Total Pages400
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size8 MB
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