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श्राद्धविधि प्रकरणम् श्रीदत्त मुनि के मुख से यह वृत्तान्त सुनकर मुझे जातिस्मरण की तरह पूर्वभव के संपूर्ण वैर का स्मरण हुआ और अहंकार से 'हंसराज को अभी मार डालूं' ऐसी कल्पना करता हुआ यहां आया। आते समय मेरे पिता ने मुझे बहत मना किया परन्तु मैंने नहीं माना। यहां आने पर हंसराज ने मुझे युद्ध में जीता। देवयोग से प्राप्त इसी वैराग्य से मैं श्रीदत्त मुनि के पास जाकर दीक्षा लूंगा। 'दुष्कर्मरूपी अंधकार को नाश करने के लिए सूर्य के समान शूर ने इतना कह अपने स्थान पर आकर शीघ्र ही दीक्षा ग्रहण कर ली, वास्तव में धर्म कार्य में शीघ्रता करनी ही प्रशंसा के योग्य है।।
प्रावाजीदविलम्बं च, धर्मे श्लाघ्या त्वरैव हि ।।७३४।। यह नियम है कि किसी वस्तु का इच्छुक मनुष्य यदि उसी वस्तु के ऊपर किसी अन्य व्यक्ति को आसक्त हुआ देखे तो उसे बहुत ही उत्सुकता होती है। इस नियम के अनुसार राजा मृगध्वज भी दीक्षा लेने के लिए अत्यन्त उत्सुक हो मन में विचार करने लगा कि, 'शाश्वत आनन्द का दाता वैराग्य रंग अभी तक क्यों मेरे चित्त में उत्पन्न नहीं होता है? अथवा केवली भगवान् ने उस समय कहा है कि जब तूं चन्द्रावती के पुत्र को देखेगा तब तुझे उत्तम वैराग्य होगा, परन्तु वंध्या की तरह चन्द्रावती को तो अभी तक पुत्र नहीं हुआ अतएव क्या करूं?' इस तरह विचार निमग्न हो राजा मृगध्वज एकान्त में बैठा था इतने में तरुणावस्था से अत्यन्त शोभायमान एक पुरुष ने आकर राजा को नमस्कार किया। राजा ने उसे पूछा कि, 'तू कौन है?' वह व्यक्ति राजा को उत्तर देता ही था कि इतने में ही दिव्य आकाशवाणी हुई कि-'हे राजन्! यह आगन्तुक पुरुष चन्द्रावती का पुत्र है। इस बात में यदि तुझे संशय हो तो यहां से ईशान कोण की ओर पांच योजन दूर दो पर्वतों के मध्य में कदलीवन है,वहां यशोमति नामक एक योगिनी रहती है उसके पास जाकर पूछ। वह तुझे सर्व वृत्तांत कहेगी।'
इस आकाशवाणी से राजा को बहुत आश्चर्य हुआ तथा उक्त पुरुष को साथ लेकर उस योगिनी के पास गया। योगिनी ने राजा को प्रीतिपूर्वक कहा कि, 'हे राजन्! तूने जो दिव्य वचन सुना वह सत्य है। संसाररूपी भयंकर जंगल में आया हुआ मार्ग बहुत ही विषम है, जिसमें तेरे समान तत्त्वज्ञानी पुरुष भी घबरा जाते हैं, यह बड़े ही आश्चर्य का विषय है। हे राजन्! इस पुरुष का प्रथम से सर्ववृत्तान्त कहती हूं; सुन। . चंद्रशेखर का चरित्र : ___ चन्द्रपुर नगर में चन्द्रमा के समान आल्हादकारी यशवाला सोमचन्द्र नामक राजा तथा भानुमति नामा उसकी रानी थी। उसके गर्भ में हेमवन्त-क्षेत्र से सौधर्मदेवलोक का सुख भोगकर एक युगल (जोड़े) ने अवतार लिया। अनुक्रम से भानुमति से ज्ञातीवर्ग को आनन्ददायक एक पुत्र व एक पुत्री का प्रसव हुआ। उनमें पुत्र का नाम चन्द्रशेखर व पुत्री का नाम चन्द्रवती रखा गया। साथ-साथ वृद्धि पाते हुए एक से एक अधिक शरीर से वृद्धि पाते हुए दोनों को जातिस्मरण ज्ञान हुआ और वे अपूर्व यौवन वय को प्राप्त हुए। इतने में राजा सोमचन्द्र ने चन्द्रवती का तेरे साथ आदरपूर्वक विवाह