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श्राद्धविधि प्रकरणम्
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के वृक्ष समान हैं अर्थात् जैसे आम का वृक्ष केवल आम फल देता है, जामुन का वृक्ष केवल जामुन फल देता है वैसे ही वे धर्म भी केवल नियमित फल के दाता है, परन्तु यदि जैनधर्म की संपूर्णतः आराधना की जाये तो वह कल्पवृक्ष की तरह मनवांछित फल देता है।'
मोक्षाभिलाषी राजा आदि सर्व लोगों ने यह उपदेश सुनकर केवली भगवान् के पास सम्यक्त्व मूल बारह व्रत ग्रहण किये। उस व्यंतर (बन्दर के जीव) तथा सुवर्णरेखा ने भी समकित को अंगीकार किया। मोह से उन दोनों का दिव्य तथा औदारिक संयोग बहुत काल तक रहा, श्रीदत्त अपने घर आया, राजा ने उसका बहुत सत्कार किया । तत्पश्चात् उसने अपनी कन्या व आधी संपत्ति शंखदत्त को देकर शेष आधी संपत्ति सात क्षेत्रों में विभाजितकर ज्ञानी गुरु के पास दीक्षा ग्रहण की और विहार करता हुआ अब यहां आया है।
(श्रीदत्त केवली कहते हैं कि) हे मृगध्वज राजन् ! दुस्तर मोह को जीतकर केवल ज्ञान पाया हुआ मैं वही श्रीदत्त हूं। इस तरह जो पूर्व भव में मेरी स्त्रियां थी वे इस भव में पुत्री तथा माता हुई, इसलिए इस संसार में यह बात कोई आश्चर्यजनक नहीं, ऐसा विचार करके विद्वान् पुरुष को व्यावहारिक सत्य के अनुसार सर्व व्यवहार करना चाहिए, सिद्धान्त में दस प्रकार का सत्य कहा है।
"व्यवहार सत्य" यथा - १ जनपदसत्य, २ संमतसत्य, ३ स्थापनासत्य, ४ नामसत्य, ५ रूपसत्य, ६ प्रतीत्यसत्य, ७ व्यवहारसत्य, ८ भावसत्य, ९ योगसत्य और १० उपमासत्य अर्थात्-कुंकण आदि देशों में 'पय, पिच्चं, नीरं, उदकं' आदि नाम से पानी को जानते हैं, यह प्रथम जनपदसत्य है। २ कुमुद (श्वेतकमल) कुवलय (नीलकमल ) आदि सब जाति के कमल कीचड़ में ही पैदा होते हैं तो भी अरविंद (रक्त कमल ) को ही पंकज कहना यह जो लोक-सम्मत है इसे सम्मतसत्य जानो । ३ लेप्यादि प्रतिमा को अरिहंत समझना अथवा एक दो इत्यादि अंक लिखना, किंवा रुपया, पैसा इत्यादिक पर 'यह रुपया है, पैसा है' ऐसे अर्थ की मुद्रा (छाप) करना यह स्थापनासत्य है । ४ कुल की वृद्धि न करने पर भी 'कुलवर्धन' कहलाना यह नामसत्य है । ५ वेष मात्र धारण करने पर भी जैसे साधु कहलाता है इसे रूपसत्य कहते हैं । ६ केवल अनामिका ( टचली के पास की अंगुली ) कनिष्ठा (टचली अंगुली ) की अपेक्षा लम्बी और मध्यमा (बीच की अंगुली) की अपेक्षा छोटी कहलाती है, इसे प्रतीत्यसत्य कहते हैं। ७ पर्वत के ऊपर स्थित वृक्ष तृण आदि के जलते हुए भी पर्वत जलता है ऐसा कहा जाता है और बरतन में से पानी गलता हो तो बरतन गलता है, कृश उदरवाली कन्या उदररहित तथा जिसके शरीर पर थोड़े-थोड़े रोम हो ऐसी भेड़ रोमरहित कहलाती है, ऐसे को व्यवहारसत्य जानो । ८ यहां भावशब्द से वर्णादिक लेना है, अतः पांच वर्ण का संभव होने पर भी बगुला सफेद कहलाता है यह भावसत्य है । ९ दंड धारण करने से दंडी कहलाता है यह योगसत्य है । १० तथा 'यह तालाब तो साक्षात् समुद्र है' इत्यादि