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________________ श्राद्धविधि प्रकरणम् 33 डालने की बात मैं ही जानता हूँ। यह बात इस बंदर ने कैसे जानी ? यह बंदर नहीं कोई अन्य है अतः इसकी खोज करनी चाहिए। यह सोचकर ) वह शीघ्र वहां से उठा । जिस कार्य में शंका उत्पन्न हो जाय उसे करना सत्पुरुष को कभी योग्य नहीं । जानबूझकर कौन प्राणी अथाग जल में प्रवेश करता है? इधर-उधर भ्रमण करते हुए श्रीदत्त ने एक मुनिराज को देखा, और उनको वन्दना करके पूछा कि, 'हे स्वामिन्! एक बन्दर ने मुझे भ्रांति-समुद्र में डाला है। आप ज्ञान की सहायता से मेरा उद्धार कीजिए। ' मुनिराज ने कहा - इस जगत् में सूर्य की तरह भव्यजीवरूपी कमल को बोध करनेवाले मेरे गुरु केवली हैं, वे इसी देश में हैं। मैं केवल अवधिज्ञान से जो कुछ जानता हूं वह तुझे कहता हूं। बन्दर ने जो कुछ कहा वह सर्व सत्य है।', 'प्रभो! कैसे सत्य मानूं?' श्रीदत्त के यह पूछने पर मुनिराज बोले कि, 'हे चतुरपुरुष! सुन। प्रथम तुझे तेरी पुत्री का वर्णन सुनाता हूं।' तेरी माता को छुड़ाने के उद्देश्य से तेरा पिता रणवीर समर नामक पल्लीपति के पास गया । ' ऐसा वीर पुरुष ही अपना कार्य करने के सर्वथा योग्य है' यह विचार करके पल्लीपति को सब वृत्तान्त कह सुनाया तथा द्रव्य भी भेंट किया। पश्चात् पल्लीपति ने श्रीमंदिरपुर पर चढ़ाई की। समुद्र की बाढ़ के समान एकाएक चढ़ी हुई पल्लीपति की सेना से श्रीमंदिरपुरवासी प्रजाजन बहुत भयभीत हुए, तथा संसार से भय पाये हुए जीव जैसे शिवसुख की इच्छा रखके सिद्धि का विचार करे उसी मुजब सब लोग किसी सुरक्षित स्थान को जाने का विचार करने लगे। उस समय तेरी स्त्री अपनी कन्या को लेकर गंगा किनारे बसे हुए सिंहपुर नगर में अपने पिता के घर गयी तथा बहुत वर्ष तक वहां अपने भाई के पास रही। यह नियम ही है कि स्त्रियों का पति, सासु, श्वसुर आदि का वियोग हो जाये तो पिता अथवा भाई ही उसकी रक्षा करते हैं। एक समय आषाढमास में तेरी कन्या को विषधर सांप ने काटा, धिक्कार है ऐसे दुष्ट जीवों के दुष्टकर्म को। सर्प विष से वह कन्या अचेत हो गयी। अनेकों उपचार किये गये लेकिन सब व्यर्थ हुए। सर्प के काटे हुए मनुष्य का जलदी अग्नि संस्कार करना योग्य नहीं, कारण कि आयुष्य दृढ़ हो तो कदाचित वह पुनर्जीवित हो जाये, इस विचार से तेरी स्त्री आदि सब लोगों ने उसे नीम के पत्तों में लपेट एक सन्दूक में बन्दकर गंगाप्रवाह में बहा दी। जलवृष्टि की अधिकता से ज्यों ही भयंकर बाढ़ आयी त्यों ही वह सन्दूक बहती हुई समुद्र में पहुंची तथा तेरे हाथ लगी। इसके आगे का वृत्तान्त तुझे ज्ञात ही है। अब तेरी माता का वर्णन कहता हूं, स्थिरचित्त से सुन - पल्लीपति की दुर्भेद्य सेना जब पास आयी तब उसके तेज से राजा सूरकान्त निस्तेज हो गया। उसने शीघ्र ही पहाड़ की तरह किल्ले की रचना की। उसमें सर्व खाद्य पदार्थ पूर्णरूप से भर दिये तथा किल्ले के अंदर स्थान-स्थान पर योग्य पराक्रमी योद्धाओं को नियत कर दिये। जो राजा शत्रु का सामना नहीं कर सकता है उसकी यही नीति है। इधर पल्लीपति की सेना ने
SR No.002285
Book TitleShraddhvidhi Prakaranam Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherJayanandvijay
Publication Year2005
Total Pages400
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size8 MB
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