________________
23
श्राद्धविधि प्रकरणम् विमलाद्रि, २ सुरशैल, ३ सिद्धिक्षेत्र, ४ महाचल, ५ शजय, ६ पुंडरीक,७ पुण्यराशी, ८ श्रीपद, ९ सुभद्र, १० पर्वतेंद्र, ११ दृढ़शक्ति, १२ अकर्मक, १३ महापभ, १४ पुष्पदंत, १५ शाश्वत, १६ सर्वकामप्रद, १७ मुक्तिगृह, १८ महातीर्थ, १९ पृथ्वीपीठ, २० प्रभुपद, २१ पातालमूल, २२ कैलास, २३ क्षितिमंडलमंडन इत्यादि १०८ नाम कहे हैं। इस अवसर्पिणी में ऋषभदेव भगवान् से लेकर चार तीर्थंकरों का यहां समवसरण हुआ है तथा भविष्य में नेमिनाथ के सिवाय बाकी १९ तीर्थंकरों का समवसरण यहां होनेवाला है। इसी प्रकार पूर्वकाल में यहां अनन्त सिद्ध हुए हैं व भविष्यकाल में भी होंगे, इसी कारण इस तीर्थको सिद्धक्षेत्र कहते हैं। सारे जगत् के स्तुति करने योग्य महाविदेह क्षेत्र में विचरनेवाले शाश्वत तीर्थंकर भी इस तीर्थ की बहुत प्रशंसा करते हैं, उसी प्रकार वहां के भव्य जीव भी नित्य इसका स्मरण करते हैं। जिस तरह उत्तमभूमि में बोया हुआ बीज कई गुणा हो जाता है, उसी तरह इस शाश्वततीर्थ में की हुई यात्रा, पूजा, तपस्या, स्नात्र तथा दान ये सर्व अनन्तगुण फल देते हैं। कहा है कि
पल्योपमसहस्रं च ध्यानाल्लक्षमभिग्रहात्। दुष्कर्म क्षीयते मार्गे, सागरोपमसम्मितम् ।।१।। शत्रुञ्जये जिने दृष्टे, दुर्गतिद्वितयं क्षिपेत्। सागराणां सहस्रं च, पूजास्नात्रविधानतः ।।२।। एकैकस्मिन्पदे दत्ते, पुण्डरीकगिरिं प्रति। भवकोटिकृतेभ्योऽपि, पातकेभ्यः प्रमुच्यते ।।३।। अन्यत्र पूर्वकोट्या यत्, शुभध्यानेन शुद्धधीः। प्राणी बध्नाति सत्कर्म, मुहूर्तादिह तद् ध्रुवम् ।।४।। जं कोडीए पुण्णं कामिअआहारभोइआए उ। तं लहइ तत्थ पुण्णं एगोवासेण सेत्तुंजे ।।५।। जं किंचि नाम तित्थं सग्गे पायालि माणसे लोए। तं सव्वमेव दिटुं पुंडरीए वंदिए संते ।।६।। पडिलंभंते संघ दिट्ठमदिढे असाहु सित्तुंजे। कोडिगुणं च अदिढे दिट्टेउ अणंतगं होइ ।।७।। नवकारपोरिसीए पुरिमड्डेगासणं च आयाम। पुंडरिअंच सरंतो फलकंखी कुणइ अभत्तहूँ ।।८।। छद्रुमदसमदुवालसाण मासद्धमासखमणाणं। तिगरणसुद्धो लहई सित्तुंज्ज संभरंतो अ ।।९।। युग्मम् ।। नवि तं सुवण्णभूमीभूसणदाणेण अन्नतित्थेसु। जं पावइ पुण्णफलं पूयाण्हवणेण सित्तुंजे ।।१०।। धूवे पखुववासो मासखवणं कपूरधूवंमि।