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________________ मूल गाथा श्राद्धविधि प्रकरणम् संक्षेपार्थ : प्रकाश - ३ : पर्वकृत्य 321 99 पव्वेसु पोसहाई बंभअणारंभतवविसेसाई । आसो अ चित्तअट्ठाहिअपमुहेसु विसेसेणं ॥ ११ ॥ सुश्रावक ने पर्वों में तथा विशेषकर आश्विन महिने की तथा चैत्र महिने की अट्ठाइ—(ओली) में पौषधआदि करना, ब्रह्मचर्य पालना, आरम्भ का त्याग करना और विशेष तपस्या आदि करना ॥ ११ ॥ विस्तारार्थ ः 'पौष' (धर्म की पुष्टि) को 'ध' अर्थात् धारण करे वह पौषध कहलाता है | श्रावक ने सिद्धान्त में कहे हुए अष्टमी, चतुर्दशी आदि पर्वों में पौषधआदि व्रत अवश्य करना। आगम में कहा है-जिनमत में सर्व कालपर्वों में प्रशस्त योग है ही । उसमें भी श्रावक को अष्टमी तथा चतुर्दशी के दिन अवश्य ही पौषध करना। ऊपर 'पौषधआदि' कहा है, इसलिए आदि शब्द से शरीर आरोग्य न होने से अथवा ऐसे ही किसी अन्य योग्य कारण से पौषध न किया जा सके, तो दो बार प्रतिक्रमण, बहुत सी सामायिक, दिशा आदि का अतिशय संक्षेपवाला देशावकाशिकव्रत आदि अवश्य स्वीकारना। उसी प्रकार पर्वों में ब्रह्मचर्य का पालन करना, आरम्भ का त्याग करना, उपवास आदि तपस्या शक्त्यानुसार पूर्व से अधिक करना । गाथा में आदि शब्द है, उससे स्नात्र, चैत्यपरिपाटी, सर्वसाधुओं को वन्दना, सुपात्रदान आदि करके, नित्य जितना देवगुरुपूजन, दान आदि किया जाता है, उसकी अपेक्षा पर्व के दिन विशेष करना । कहा है कि—जो प्रतिदिन धर्मक्रिया सम्यक् प्रकार से पालो, तो अपार लाभ है; परन्तु जो वैसा न किया जा सकता हो तो, पर्व के दिन तो अवश्य ही पालो । विजयादशमी (दशहरा), दीपमालिका, अक्षयतृतीया आदि लौकिक पर्वों में जैसे मिष्टान्न भक्षण की तथा वस्त्र आभूषण पहनने की विशेष यतना रखी जाती है, वैसे धर्म के पर्व आने पर धर्म में भी विशेष यतना ( प्रवृत्ति) रखनी चाहिए। अन्यदर्शनी लोग भी एकादशी, अमावस्या आदि पर्वों में बहुतसा आरम्भ त्यागते हैं, और उपवासादि करते हैं, तथा संक्रान्ति, ग्रहण आदि पर्वों में भी अपनी पूर्णशक्ति से दानादिक देते हैं। इसलिए श्रावक को तो समस्त पर्व दिनों में अवश्य धर्मकृत्य विशेष करने चाहिए। पर्व दिन इस प्रकार हैं - अष्टमी २, चतुर्दशी २, पूर्णिमा १, और अमावस्या १ ये छः पर्व प्रत्येक मास में आते हैं, और प्रत्येक पक्ष में तीन ( अष्टमी १, चतुर्दशी १, पूर्णिमा १ अथवा अमावस्या १ ) पर्व आते हैं। इसी प्रकार 'गणधर श्री गौतमस्वामी ने बीज, पंचमी, अष्टमी, एकादशी और चतुर्दशी' ये पांच
SR No.002285
Book TitleShraddhvidhi Prakaranam Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherJayanandvijay
Publication Year2005
Total Pages400
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size8 MB
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