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________________ श्राद्धविधि प्रकरणम् 305 प्रतिक्रमण का समय : प्रतिक्रमण के १ देवसी, २ राइ, ३ पक्खी , ४ चौमासी और ५ संवत्सरी ऐसे पांच भेद हैं। इनका समय उत्सर्ग मार्ग से इस प्रकार कहा है कि-'गीतार्थपुरुष सूर्यबिंब का अर्धभाग अस्त हो तब (दैवसिक प्रतिक्रमण) सूत्र कहते हैं। यह प्रामाणिक वचन है, इसलिए देवसीप्रतिक्रमण का समय सूर्य अर्धअस्त हो यह है। राइ प्रतिक्रमण का काल इस प्रकार है-आचार्य आवश्यक (प्रतिक्रमण) करने का समय होता है, तब निद्रा त्यागते हैं, और आवश्यक इस रीति से करते हैं कि जिससे दश पडिलेहणा करते ही सूर्योदय हो जाय। अपवाद मार्ग से तो देवसीप्रतिक्रमण दिन के तीसरे प्रहर से अर्धरात्रि तक किया जाता है, योगशास्त्र की वृत्ति में तो देवसीप्रतिक्रमण मध्याह्न से लेकर अर्धरात्रि तक किया जाता है ऐसा कहा है, इसी प्रकार राइप्रतिक्रमण मध्य रात्रि से लेकर मध्याह्न तक किया जाता है, कहा है कि 'राइप्रतिक्रमण आवश्यकचूर्णि के अभिप्रायानुसार उग्घाडपोरिसी तक किया जाता है, और व्यवहारसूत्र के अभिप्राय से पुरिमड (मध्याह्न) तक किया जाता है।' पाक्षिकप्रतिक्रमण पखवाड़े के अंत में, चातुर्मासिक चौमास के अंत में और सांवत्सरिक वर्ष के अंत में किया जाता है। पाक्षिक प्रतिक्रमण कब ? शंकाः पक्खी (पाक्षिक) प्रतिक्रमण चतुर्दशी को किया जाता है कि अमावास्या ___ अथवा पूर्णिमा को? उत्तर : "हम कहते हैं कि चतुर्दशी को ही किया जाय। जो अमावस्या अथवा पूर्णिमा को पक्खी प्रतिक्रमण किया जाय तो चतुर्दशी तथा पक्खी के दिन भी उपवास करने का कहते हैं, इस से पक्खी आलोचना भी छह से हो जाती है। और ऐसा करने से आगमवचन का विरोध आता है। आगम में कहा है कि-'अट्ठम-छट्ठ-चउत्थं, संवच्छरचाउमासपक्खेसु' दूसरे आगम में जहां 'पाक्षिक' शब्द ग्रहण किया है, वहां 'चतुर्दशी' शब्द ग्रहण किया है वहां 'पाक्षिक' शब्द पृथक् नहीं लिया। यथा''अहमिचउद्दसीसु उववासकरणं' यह वचन पाक्षिकचूर्णि में है। "सोअट्टमिचउद्दसीसु उववासं करेइ' यह वचन आवश्यकचूर्णि में है। ''चउत्थछट्टट्ठमकरणे अट्ठमिपक्खचउमासवरिसे अ' यह वचन व्यवहारभाष्य की पीठिका में है। १. देवसिय पडिक्कमणे ठाउं यह सूत्र बोला जाता है। ते पुण ससूरि उच्चिअ, पासवणुच्चारकानभूमिओ। पेहित्ता अत्थमिए, तं तुस्सग्गं सएठाणे १२०९।। आवश्यक सूत्र टीका के २०९ में श्लोक में २४ मांडला करने के पश्चात् सूर्यास्त के समय प्रतिक्रमण ठाने का अ.रा.को. भा.३/४१४ पृष्ठ पर विधान है। २. संवत्सरी पर अट्ठम, चौमासी पर छट्ठ और पक्खी पर उपवास करना। ३. अष्टमीचतुर्दशी को उपवास करना। ४. सो अष्टमी चतुर्दशी को उपवास करे। ५. अष्टमी तथा पक्खी पर उपवास, चौमासी पर छट्ठ और संवत्सरी पर अट्ठम करना।
SR No.002285
Book TitleShraddhvidhi Prakaranam Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherJayanandvijay
Publication Year2005
Total Pages400
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size8 MB
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