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________________ श्राद्धविधि प्रकरणम् 19 कमलमाला तथा शुकराज कुमार को लेकर उद्यान में गया। और उस आम्रवृक्ष को देखते ही खिन्न होकर कमलमाला से कहने लगा कि, 'हे देवी विष के समान इस आम्रवृक्ष को दूर से ही त्यागना चाहिए। क्योंकि इसीके नीचे अपने पुत्र की यह दुर्दशा हुई है।' यह कहकर ज्यों ही आगे बढ़ने लगा त्यों ही एकाएक उसी वृक्ष के नीचे हर्ष उत्पन्न करनेवाली दुंदुभी की ध्वनि हुई । राजा के पूछने पर किसीने कहा कि, ' श्रीदत्त मुनिमहाराज को अभी ही केवलज्ञान उत्पन्न हुआ है, उसका देवता महोत्सव करते हैं।' केवली भगवान् को पुत्र के विषय में पूछने की इच्छा से राजा ने उत्सुकतापूर्वक परिवार सहित वहां जाकर भगवंत को वंदना करके वहां पर्षदा में पुत्र के साथ बैठ गया। केवली मुनिराज ने अमृत तुल्य क्लेश को दूर करनेवाला उपदेश दिया। अवसर पाकर राजा ने पूछा कि, 'हे भगवंत ! मेरे इस पुत्र की वाचा बन्द हो गयी है इसका क्या कारण है?' केवली भगवंत ने उत्तर दिया है, 'यह बालक बोलेगा' यह सुन हर्षित हो राजा बोला कि 'तो यह बार-बार हमारी तरफ देखता ही क्यों रह जाता है ?' केवली महाराज कुमार को लक्ष करके कहा कि, 'शुकराज ! तू हमको यथाविधि वन्दन कर' यह सुनते ही शुकराजकुमार ने उच्चस्वर से वंदना सूत्र (इच्छामि खमासमण का पाठ ) बोलकर केवली भगवंत को वंदना की। यह देखकर वहां उपस्थित सब लोगों को बड़ा ही आश्चर्य हुआ और कहने लगे कि, 'कैसी आश्चर्य की बात है ?, मुनि महाराज की यह कैसी अपूर्व महिमा है कि बिना मंत्र-तंत्र के देखते ही यह बालक स्पष्ट बोलने लग गया।' पश्चात् राजा के स्पष्ट कारण पूछने पर केवली भगवंत ने कहा कि, 'हे चतुर ! इस आकस्मिक घटना का कारण पूर्व भव में हुआ था, सो सुन ! पूर्व काल में मलयदेश में भद्दिलपुर नामक एक श्रेष्ठ नगर था। वहां याचकजनों को श्रेष्ठ अलंकारादि देनेवाला तथा अपने दुश्मनों को बन्दीगृह भेजनेवाला, चातुर्य, औदार्य, शौर्य आदि गुण सम्पन्न, आश्चर्यकारी चारित्रवान् जितारि नामक राजा राज्य करता था। एक समय वह सभा में बैठा था कि इतने में द्वारपाल ने आकर विनती की कि, 'हे देव! आपके दर्शन की इच्छा से आया हुआ विजयपाल राजा का शुद्धचित्त दूत द्वार पर खड़ा है।' राजा ने उसे अन्दर लाने की आज्ञा देने पर द्वारपाल उसे लेकर अंदर आया । अपने कर्तव्य का ज्ञाता और सत्यवादी दूत राजा को प्रणामकर कहने लगा 'हे महाराज! साक्षात् देवपुर (स्वर्ग) के समान देवपुर नामक एक नगर है। वहां वासुदेव के समान पराक्रमी विजयदेव नामक राजा है। उसकी महासती पट्टरानी का नाम प्रीतिमती है। उत्तम राजनीति से जिस प्रकार साम, दाम, दंड और भेद ये चार उपाय उत्पन्न होते हैं, उसी प्रकार रानी से चार श्रेष्ठ पुत्र उत्पन्न हुए । उनके बाद हंसनी के दोनों उज्वल पंखों की तरह मोसाल तथा पिता के दोनों ही शुद्ध कुलवाली एक
SR No.002285
Book TitleShraddhvidhi Prakaranam Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherJayanandvijay
Publication Year2005
Total Pages400
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size8 MB
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