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________________ __ 18 श्राद्धविधि प्रकरणम् मन को आनन्दित करने लगा। एक समय वसन्तऋतु में जब कि सारा उद्यान सुन्दर, सुगन्धित पुष्पों से सुगन्धमय होकर लहरा रहा था, मृगध्वज राजा अपने सभी स्त्री पुत्रादिक परिवार सहित वहां गया और पूर्व परिचित आम्रवृक्ष के नीचे बैठा तथा पिछली बातों का स्मरण करके कमलमाला से कहने लगा कि, 'जिस वृक्ष पर बैठे हुए तोते द्वारा तेरा नाम सुनकर मैं वेग से आश्रम तरफ दौड़ा और वहां तेरा पाणिग्रहण करके कृतार्थ हुआ, वह यही सुन्दर आम्रवृक्ष है।' पिता की गोद में बैठा हुआ शुकराज यह बात सुनकर शस्त्र से काटी हुई कल्पवृक्ष की डाली के समान मूर्छित होकर भूमि पर गिर पड़ा। माता-पिता का बढ़ा हुआ हर्ष एकदम नष्ट हो गया। आतुर होकर उन्होंने इस प्रकार कोलाहल किया कि सब लोग वहां एकत्रित हो गये। सब लोग बहुत ही आकुल व्याकुल हो गये, भारी हाहाकार मच गया। सत्य है बड़ा पुरुष सुखी तो सब सुखी और वह दुःखी तो सब दुःखी। चन्दन का शीतल जल छिड़कना, केलपत्र से हवा करना आदि अनेक शीतल उपचार करने से बहुत समय के बाद शुकराज को चैतन्य हुआ। यद्यपि उसकी आंखे कमलपुष्प की तरह खुल गयी, चैतन्यतारूपी सूर्य का उदय हो गया तथापि मुखकमल प्रफुल्लित नहीं हुआ। विचारपूर्वक वह चारों और देखने लगा, किन्तु छद्मस्थ तीर्थंकर की तरह मौन धारण करके बैठा रहा।। मातापिता ने विचार किया कि-'दैवयोग से यह इधर-उधर देखता है इसमें कुछ तो भी छलकपट होना चाहिए, परंतु विशेष दुःख की बात तो यह है कि इसकी वाचा ही बंध हो गयी। इस प्रकार संकल्प विकल्प करते चिन्तातुर होकर वे उसे घर ले गये। राजा ने कुमार की वाणी प्रकट करने के लिए नाना प्रकार के उपाय किये, परंतु वे सर्वदुर्जन पर किये हुए उपकारों की तरह निष्फल हो गये। छः मास इसी तरह व्यतित हो गये। परंतु कुमार की मौनावस्था का कोई भी योग्य निदान न कर सका। ____ 'बड़े खेद की बात है कि विधाता अपने रचे हुए प्रत्येक रत्न में कुछ भी दोष रख देता है,जैसे कि-चंद्रमा में कलंक, सूर्य में तीक्ष्णता, आकाश में शून्यता, कौस्तुभमणि में कठोरता, कल्पवृक्ष में काष्ठपन, पृथ्वी में रजःकण, समुद्र में खारापन, सर्वजगत् को ठंडक देनेवाले मेघ में कृष्णता, जल में नीचगति, स्वर्णमय मेरुपर्वत में कठिनता, कपूर में अस्थिरता, कस्तूरी में कालापन, सज्जनों में निर्धनता, श्रीमंतों में मूर्खता तथा राजाओं में लोभ रख दिया है, वैसे ही सर्वथा निर्दोष इस कुमार को मूक (गूंगा) कर दिया है।' इस प्रकार समस्त नगरवासी जन उच्चस्वर से शोक करने लगे। भला, बड़े लोगों का कुछ अनिष्ट हो जाय तो किसको खेद नहीं होता? कुछ काल के अनन्तर कौमुदी महोत्सव का समय आया (इस उत्सव में प्रायः लोग प्रकटरूप से क्रीड़ा करते हैं और बहुत ही आनंद मनाते हैं।) तब पुनः राजा
SR No.002285
Book TitleShraddhvidhi Prakaranam Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherJayanandvijay
Publication Year2005
Total Pages400
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size8 MB
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