SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 28
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्राद्धविधि प्रकरणम् 17 आज कुछ रात्रि रहते स्वप्नावस्था में मैंने उस आश्रम के चैत्य में बिराजमान श्री ऋषभदेव भगवान् को वन्दना की, उसी समय भगवान् ने प्रसन्न होकर मुझसे कहा कि, 'हे भद्र! तूं यह तोता ले तथा अन्य किसी समय मैं तुझे एक हंस दूंगा। यह कहकर भगवान् ने एक दिव्य वस्तु के समान अत्यन्त सुन्दर तोता मुझे दिया। प्रभु के उक्त प्रसाद से मुझे इतना आनन्द हुआ कि मानो चारों ओर से ऐश्वर्य की प्राप्ति हुई हो, उसी समय मेरी निद्रा खुल गयी । हे स्वामी! एकाएक प्राप्त हुए इस स्वप्नवृक्ष से हमको कैसे फल मिलेंगे, सो कहिए ?' परमानन्द रूपी कंद को नव पल्लव (हराभरा ) करने के लिए मेघवृष्टि के सदृश कमलमाला के वचन सुनकर स्वप्नफल का ज्ञाता राजा मृगध्वज बोला कि, 'हे प्रिये! देवताओं के दर्शन के समान ऐसे दिव्य स्वप्न के दर्शन भी बड़े दुर्लभ हैं। विरला ही भाग्यशाली जीव ऐसे स्वप्न का दर्शन करता है तथा तदनुसार फल पाता है । सुन्दरी ! जिस तरह पूर्व दिशा को सूर्य चन्द्र के समान दो प्रतापी पुत्र होते हैं उसी तरह तेरे भी अनुक्रम से दो तेजस्वी पुत्र हों। पक्षी कुल में श्रेष्ठ तोते और हंस की तरह वे दोनों ही अपने राज्य में प्रतिष्ठित होंगे। हे प्रिये ! इसमें जरा भी संशय नहीं कि भगवान् ने प्रसादरूप जो तुझे दो पुत्र दिये हैं वे दोनों अन्त में मुक्त होकर भगवान् के ही सदृश पूजनीय होंगे।' यह वचन सुनकर रानी पुलकित हो गयी और रानी कमलमाला ने, पृथ्वी अमूल्य रत्न को अथवा आकाश सूर्य को धारण करता है उसी तरह गर्भ धारण किया। मेरुपर्वत की भूमि में दिव्य-रसों से जिस प्रकार से कल्पवृक्ष का कंद पुष्ट होता है उसी प्रकार राजा के धर्मानुसार समय व्यतीत करने से गर्भ वृद्धि को प्राप्त हुआ तथा यथोचित समय पर शुभ दिवस, शुभ लग्न में पूर्व दिशा में पूर्ण चन्द्रमा के समान रानी कमलमाला के गर्भ से सुपुत्र का प्रसव हुआ। पट्टरानी का पुत्र होने से अन्य पुत्र की अपेक्षा इसका जन्मोत्सव विशेषता से मनाया गया। तीसरे दिन राजा ने आनन्दोत्सव सहित उस पुत्र को सूर्य चन्द्र का दर्शन करवाया। छठ्ठे दिन राज्योचित धूमधाम से रात्रिजागरण किया। तत्पश्चात् शुभ मुहूर्त देखकर स्वप्न के अनुसार उसका 'शुकराज' नाम रखा। पंच समिति से रक्षित धर्म की तरह पांच धायमाताओं से पलता हुआ शुकराज नवचन्द्र की तरह बढ़ने लगा। राज्य कुल की रीति के अनुसार राजा ने अन्नप्राशन, रिखण (घुटने चलना), चालण (चलना) वचन (बोलना ), वस्त्राच्छादन (कपड़े पहराना), वर्षगांठ इत्यादिक सर्व कार्य बड़े आनन्दोत्सव से किये । क्रमशः शुकराज पांच वर्ष का हुआ। इतने अल्पायु में भी जिस प्रकार पांच वर्ष का आम्रवृक्ष सुमधुर फल देता है उसी तरह वह जो कुछ भी कार्य करता था उसका फल भी सर्वदा उत्तम ही होता था। परिपूर्ण सर्व सद्गुणों ने मन ही मन स्पर्धा रखकर इन्द्रपुत्र जयन्त की रूपसंपदा को जीतने वाले शुकराज का आश्रय लिया। यह बालक बोलने की चतुरता, मधुरता, पटुता तथा भावपूर्णता आदि गुणों से विद्वानों की तरह सज्जनों के
SR No.002285
Book TitleShraddhvidhi Prakaranam Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherJayanandvijay
Publication Year2005
Total Pages400
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy