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श्राद्धविधि प्रकरणम् सेवकों की यह बात राजा को पसंद आयी। ठीक है, अवसर के अनुसार किया हुआ कार्य और कहा हुआ वचन किसको सम्मत नहीं होता?
तत्पश्चात् मृगध्वज राजा परिवार सहित मंगल बाजों की मधुरध्वनि से दिशाओं को गुंजाता हुआ अपने नगर की ओर चला। अपने बिल से दूर खड़ा हुआ चूहा तक्षक सर्प को सामने आता देखकर जिस प्रकार भाग जाता है, उसी प्रकार परिवार सहित धूम धड़ाके से आते हुए राजा मृगध्वज को देखकर चंद्रशेखर राजा भाग गया। और चालाक बुद्धि होने के कारण उसने उसी समय अपने एक चतुर दूत के साथ मृगध्वज राजा को भेंट भेजी, उस दूत ने मगध्वज राजा के पास आ विनयपूर्वक कहा कि, 'हे महाराज! हमारे स्वामी आपको प्रसन्न करने के हेतु आपके चरणकमलों में विनती करते हैं कि, 'किसी धूर्त के छल से, आप राज्य छोड़कर कहीं चले गये ऐसा समाचार पाकर मैं आपके नगर में अमन चैन रखकर उसकी रक्षा के हेतु आया था, परंतु आपके सरदारों को इस बात का ज्ञान न होने से वे सज धजकर शत्रु की तरह मेरे साथ लड़ने लगे। परंतु मैंने सब तरह से शस्त्र प्रहार सहन करके आपके नगर की रक्षा की। समय पड़ने पर जो स्वामी का कार्य चित्त से नहीं करता वह क्या सेवक हो सकता है? नहीं। प्रसंग पड़ने पर पुत्र पिता के लिए, शिष्य गुरु के लिए, सेवक स्वामी के लिए और स्त्री पति के लिए अपने प्राण को तृण समान समझते हैं, यह लोकोक्ति ठीक है।'
चन्द्रशेखर के दूत के यह वचन सुनकर मृगध्वज राजा को वचनों की सत्यता के विषय में कुछ संशय तो हुआ, परन्तु 'कुछ अंश में सत्य होंगे' ऐसा सरल स्वभाव से मान लिया। और मिलने के लिए सन्मुख आये हुए चन्द्रशेखर राजा का उचित सत्कार किया। यह मृगध्वज राजा की कितनी दक्षता, सरलता तथा गंभीरता है?
तत्पश्चात् लक्ष्मी के समान कमलमाला के साथ विष्णु के समान सुशोभित मृगध्वज राजा ने अपूर्व आनन्दोत्सव सहित नगर प्रवेश किया और जिस तरह शंकर ने चन्द्रकला को मस्तक पर धारण की हुई है उसी तरह अपनी सुन्दर प्रिय पत्नी कमलमाला को पट्टरानी पद पर स्थापित कर दी; यह योग्य भी था। 'जिस प्रकार युद्ध में जय प्राप्ति करनेवाला केवल राजा ही होता है परन्तु पैदल आदि सेना ही उसको सहायता करती है, उसी प्रकार पुत्र आदि इष्ट वस्तुओं को देनेवाला केवल धर्म है, परन्तु मंत्र आदि ही उसके सहायक हैं। यह विचारकर राजा ने पुत्र प्राप्ति के निमित्त एक दिन स्थिर चित्त होकर गांगलि ऋषि के दिये हुए मंत्र का जाप किया, जिससे सब रानियों के एक-एक पुत्र उत्पन्न हुआ। सत्य है, योग्य कारणों के मिल जाने से अवश्य ही कार्य की उत्पति होती है। यद्यपि राजा मृगध्वज सरल स्वभाव से चन्द्रवती रानी को बहुत मानता था, तथापि उसने पति के साथ जो वैर किया था उस पाप के कारण उसे सन्तान न हुई।
एक दिन रात्रि के समय रानी कमलमाला सुखपूर्वक सो रही थी, उस समय उसने एक दिव्य स्वप्न देखा और राजा से इस प्रकार कहने लगी कि, 'हे प्राणनाथ!