SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 298
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्राद्धविधि प्रकरणम् 287 उस समय नगरवासियों ने आकर प्रणामकर चोर का उपद्रव अच्छी प्रकार कह सुनाया। जिससे राजा को क्रोध आया, उसके नेत्र लाल हो गये, और उसी समय उसने मुख्य कोतवाल को बुलाकर, भला बुरा कहा। कोतवाल बोला' हे स्वामिन्! असाध्यव्याधि में जैसे कोई भी उपाय नहीं चलता, वैसे मेरा अथवा मेरे आधीनस्थ कर्मचारियों का उस बुलन्द चोर के संमुख कोई भी उपाय नहीं चलता। अतएव जो आप उचित समझें वह कीजिए।' अन्तमें महान् पराक्रमी व यशस्वी पुरन्दर राजा स्वयं गुप्त रीति से चोर की शोध करने लगा। अकस्मात् एक दिन राजा ने उक्त चोर को चोरी के माल सहित देखा । ठीक है, प्रमाद का त्याग करके प्रयत्न करनेवाले पुरुष क्या नहीं कर सकते हैं? धूर्त बगुला जैसे चुपचाप मछली के पीछे-पीछे जाता है उसी तरह उस बात का पूर्ण निर्णय करने तथा उसका स्थान आदि जान लेने के हेतु गुप्तरीति से राजा ने उसका पीछा किया। उस धूर्त चोर ने किसी प्रकार शीघ्र राजा को पहिचान लिया। दैव की अनुकूलता से क्या नहीं हो सकता? उस शठ चोरने क्षणमात्र में राजा की दृष्टि चुकाकर एक मठ में प्रवेश किया। उस मठ में कुमुद नामक एक तपस्वी रहता था। वह गाढ़निद्रा में सो रहा था। वह शठ चोर अपने जीव को भाररूप चोरी का माल वहां छोड़ कहीं भाग गया। राजा इधर-उधर उसकी खोज करता हुआ मठ में घुसा, वहां चोरी के माल सहित तापस को देखा। राजा ने क्रोध से कहा—दुष्ट और चोर, हे दंडचर्मधारी तापस! चोरी करके अब तू कपट से सो रहा है ! झूठी निंद्रा लेनेवाले ! मैं अभी तुझे दीर्घनिद्रा (मृत्यु) देता हूं।' राजा के वज्रसमान कठोर वचनों से तापस भयभीत हुआ व घबराकर जागृत हुआ था, तो भी उत्तर न दे सका, निर्दयी राजा ने सुभटों द्वारा बंधाकर उसे सवेरे शूली पर चढ़ाने का हुक्म किया। अरेरे! अविचारी कृत्य को धिक्कार है!! तापस ने कहा, 'हाय हाय! हे आर्यपुरुषों! मैं बिना चोरी किये ही शोध न करने के कारण मारा जाता हूं' यद्यपि तापस का यह कथन सत्य था तथापि उस समय विशेष धिक्कार का पात्र हुआ, जब दैव प्रतिकूल होता है तब कौन अनुकूल रहे? देखो ! राहु चंद्रमा को अकेला देखकर उसका ग्रास करता है, तब कोई भी उसकी सहायता नहीं करता । पश्चात् विकराल यमदूतों के समान उन सुभटों ने उक्त तापस का मुंडन किया, गधे पर चढ़ाया तथा अन्य भी बहुतसी विडंबनाएं करके प्राणघातक शूली पर चढ़ा दिया । अरेरे! पूर्वभव में किये हुए बुरे कर्मों का कैसा भयंकर परिणाम होता है? तापस स्वभाव से शान्त था तथापि उस समय उसे बहुत क्रोध आया, जल स्वभाव से शीतल है तो भी तपाने से वह बहुत उष्ण हो ही जाता है । वह तापस तत्काल मृत्यु को प्राप्त होकर राक्षसयोनि में गया । मृत्यु के समय ऐसी भावनावाले लोगों को व्यंतर की ही गति प्राप्त होती है। हीनयोनी में उत्पन्न हुए उस दुष्टराक्षस ने रोष से क्षणमात्र से अकेले राजा को मार डाला। अरेरे! बिना विचारे कार्य करने से कैसा बुरा परिणाम होता है ? तत्पश्चात् उसने नगरवासी सर्व लोगों को निकाल बाहर किया। राजा के अविचारी कृत्य से प्रजा
SR No.002285
Book TitleShraddhvidhi Prakaranam Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherJayanandvijay
Publication Year2005
Total Pages400
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy