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________________ 266 श्राद्धविधि प्रकरणम् यह तूफानी पवन? यम जैसे जीव को ले जाता है, वैसे यह अत्यन्त भयंकर पवन तापसकुमार को हरणकर, कृतार्थ हो कौन जाने उसे कहां और किस प्रकार ले गया? हे कुमार! इतनी देर में वह पवन तापसकुमार को असंख्य लक्ष योजन दूर ले जाकर कहीं गायब हो गया। इसलिए तू शीघ्र वापस आ।' बड़े वेग से किया हुआ कार्य निष्फल हो जाने से लज्जित हुआ कुमार तोते के वचन से वापिस लौटा और अत्यन्त खिन्न हो इस प्रकार विलाप करने लगा, 'हे पवन! तने मेरे सर्वस्व तापसकमार को हरणकर दावाग्नि समान कर बर्ताव क्यों किया? हाय हाय! तापसकुमार का मुखचन्द्र देखकर मेरे नेत्ररूपी नीलकमल कब विकसित होंगे? अमृत की लहर के समान स्निग्ध, मुग्ध और मधुर व चित्ताकर्षक दृष्टिविलास किस प्रकार मुझे मिलेंगे? मैं दरिद्री उसके कल्पवृक्ष के पुष्प समान, अमृत को भी तुच्छ करनेवाले बार-बार मुख से निकलते हुए वचन अब किस प्रकार सुनूंगा?' स्त्रियों के वियोग से दुःखी मनुष्यों की तरह इस प्रकार नानाविध विलाप करनेवाले रत्नसारकुमार को तोते ने इस रीति से यथार्थ बात कही कि, 'हे रत्नसार! जिसके लिए तू शोक करता है वह वास्तव में तापसकुमार नहीं, परन्तु किसी मनुष्य की निजशक्ति से रूपान्तर में परिवर्तित की हुई यह कोई अन्य है, ऐसा मैं सोचता हूं। उसके भिन्न-भिन्न मनोविकार से, मनोहर वाणी से, कटाक्ष, आकर्षक दृष्टि से और ऐसे ही अन्य लक्षणों से मैं तो निश्चय अनुमान करता हूं कि, वह कोई कन्या है। ऐसा न होता तो तेरे प्रश्न से उसके नेत्र अश्रुओं से क्यों भर गये थे? यह तो स्त्रीजाति का लक्षण है। उत्तमपुरुष में ऐसे लक्षण होना संभव ही नहीं। वह घनघोर पवन नहीं था, बल्कि कोई दिव्यस्वरूप था। ऐसा न होता तो उस पवन ने अकेले तापसकुमार को ही हरणकर अपने को क्यों छोड़ दिया? मैं तो निश्चयपूर्वक कहता हूं कि वह कोई बिचारी भली कन्या है और उस पर कोई दुष्टदेवता, पिशाच आदि उपद्रव करते हैं। दुष्टदैव के संमुख किसका वश चलता है? जब वह कन्या दुष्ट पिशाच के हाथ में से छूटेगी, तब निश्चय से तुझे ही वरेगी। कारण कि, जिसने प्रत्यक्ष कल्पवृक्ष को देख लिया वह अन्य वृक्ष पर प्रीति कैसे रख सकता है? जैसे सूर्य का उदय होते ही रात्रिरूपी पिशाचिका के हाथ में से कमलिनी छूटती है, वैसे ही वह कन्या भी तेरे शुभकर्म का उदय होने पर उस दुष्ट पिशाच के हाथ में से छूटेगी, ऐसा मैं निश्चय समझता हूं, पश्चात् सौभाग्यवश वह कन्या कहीं पर भी तुझे मिलेगी। कारण कि, भाग्यशाली पुरुषों को वांछित वस्तु की प्राप्ति अवश्य होती है। हे कुमार यद्यपि यह बात मैं कल्पना करके कहता हूं, तथापि तू इसे मान्य करना। थोड़े ही समय के अनंतर सत्यासत्य का निर्णय हो जायेगा। इसलिए हे कुमार! तू सुविचारी होकर ऐसा विलाप क्यों करता है? धीरपुरुष को यह बात उचित नहीं।' कर्तव्यज्ञानी रत्नसारकुमार ने तोते की ऐसी युक्ति से परिपूर्ण वाणी सुनकर शोक करना छोड़ दिया।ज्ञानियों का वचन क्या नहीं कर सकता? इसके अनन्तर रत्नसारकुमार व तोता दोनों अश्व पर बैठकर इष्टदेव की तरह तापसकुमार का स्मरण करते हुए
SR No.002285
Book TitleShraddhvidhi Prakaranam Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherJayanandvijay
Publication Year2005
Total Pages400
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size8 MB
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