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________________ - श्राद्धविधि प्रकरणम् 265 सके? कारण कि मेरे समान अनुकंपापात्र पर तुम्हारी दया स्पष्ट दिख रही है। अपने आपके अथवा अपने कुटुम्बियों के दुःखित होने पर कौन दुःखी नहीं होता? परन्तु परदुःख से दुःखी होनेवाले पुरुष जगत् में विरले ही होंगे कहा है कि शूराः सन्ति सहस्रशः प्रतिपदं विद्याविदोऽनेकशः, सन्ति श्रीपतयोऽप्यपास्तधनदास्तेऽपि क्षिती भूरिशः। किन्त्वाकर्ण्य निरीक्ष्य वाऽन्यमनुजं दुःखादितं यन्मन-, स्तादूप्यं प्रतिपद्यते जगति ते सत्पुरुषाः पञ्चषाः ।।१४४।। अबलानामनाथानां, दीनानामथ दुःखिनाम्। परैश्च पराभूतानां, त्राता कः? सत्तमात्परः ॥१४५।। शूरवीर पंडित अपनी लक्ष्मी से कुबेर को भी मोल ले लेवे ऐसे श्रीमंत लोग तो पृथ्वी पर पद-पद पर सहस्रों दृष्टि आयेंगे परन्तु जिस पुरुषका मन परदुःखको प्रत्यक्ष देखकर अथवा कान से श्रवणकर दुःखी होता है ऐसे सत्पुरुष जगत में पांच छः ही होंगे। स्त्रियों, अनाथ, दीन, दुःखी और भय से पराभव पाये हुए मनुष्यों की रक्षा करनेवाले सत्पुरुषों के सिवाय और कौन हैं? अतएव हे कुमार! मेरा यथार्थवृत्तांत्त तेरे समक्ष कहता हूं। वास्तविक प्रीति रखनेवाले पुरुष के संमुख कौनसी बात गुप्त रखी जा सकती है?' तापसकुमार यह बोल ही रहा था इतने में, मदोन्मत्त हाथी के समान वन को वेग से समूल उखाड़ डालनेवाला, एक सरीखी उछलती हुई धूल के समुदाय से तीनों जगत् को अपूर्व घनघोर गर्द में अतिशय गर्क करनेवाला, महान् भयंकर धूत्कार शब्द से दिशाओं में रहनेवाले मनुष्यों के कान को भी जर्जर कर डालनेवाला, तापसकुमार के आत्मवर्णन कहने के मनोरथरूपी रथ को बलात्कार से तोड़कर अपने 'प्रभंजन' नाम को सार्थक करनेवाला अकस्मात् चढ़ आये हुए महानदी के पूर की तरह समग्र वस्तुओं को डूबानेवाला तथा तूफानी, दुष्ट उत्पातपवन की तरह असह्य पवन तीव्रवेग से बहने लगा, और काबिल चोर की तरह मानो मंत्र से ही रत्नसार और तोते की दृष्टि धूल से बंध करके वह पवन तापसकुमार को उड़ा ले गया। कुमार व तोते को केवल उसका निम्नांकित आर्तनाद सुन पड़ा। यथा "हाय! हाय! महान् आपदा आ पड़ी!! हे सर्वलोगों के आधार, अतिशय सुन्दर, सम्पूर्ण लोगों के मन के विश्रांतिस्थान, महापराक्रमी, जगत्-रक्षक कुमार! इस संकट में से मेरा रक्षण कर, रक्षण कर!' क्रोध से युद्धातुर हो रत्नसार, 'अरे दुष्ट! मेरे प्राणजीवन तापसकुमार को हरण करके कहां जाता है?' ऐसा उच्चस्वर से कहकर तथा दृष्टिविष सर्प समान विकराल तलवार म्यान में से निकालकर वेग से उसके पीछे दौड़ा। सत्य ही है शूरवीर लोगों की यही रीति है। रत्नसार के कुछ दूर चले जाने पर उसके इस अद्भुत चरित्र से चकित हो तोते ने कहा, 'हे रत्नसार कुमार! तू चतुर होते हुए मुग्धमनुष्य की तरह पीछे-पीछे क्यों दौड़ता है? कहां तो तापसकुमार? और कहां
SR No.002285
Book TitleShraddhvidhi Prakaranam Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherJayanandvijay
Publication Year2005
Total Pages400
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size8 MB
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