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________________ 264 श्राद्धविधि प्रकरणम् को बताये। फल, फूल की समृद्धि से नतमस्तक हुए बहुत से अपरिचित वृक्षों का नाम ले-लेकर उसने पहिचान करायी। पश्चात् मार्गश्रम दूर करने के लिए रत्नसारकुमार ने एक छोटे सरोवर में स्नान किया। तदनन्तर तापसकुमार ने उसके सन्मुख निम्नाङ्कित फलादि लाकर रखे-प्रत्यक्ष अमृत के समान कुछ पकी कुछ कच्ची द्राक्ष, व्रतधारी लोग भी जिनको देखकर भक्षण करने के लिए अधीर हो जाय ऐसे पके हुए मनोहर आम्रफल, नारियल, केले, सुधाकरी के फल, खजूर, खिरनी, श्रीरामलकी के फल, स्निग्धबीजवाले हारबंध चारोली के फल, सुन्दर बीजफल, मधुर बिजोरे, नारंगियां सर्वोत्कृष्ट दाडिम, पके हुए साकर लींबू, जामुन, बेर, गोंदे, पीलू, फणस, सिंघाडे, सकरटेटी, पक्के तथा कच्चे बालुक फल, द्राक्षादिक के सरस शरबत, नारियल का तथा स्वच्छ सरोवर का जल, शाक के स्थान में कच्चा अम्लवेतस, इमली, लीम्बू आदि; स्वादिम की जगह कुछ हरी कुछ सूखी हारबंध सुपारियां, चौड़े-चौड़े निर्मल पान, इलायची, लवंग, लवलीफल, जायफल आदि, तथा भोग सुख के निमित्त शत पत्र (कमल विशेष)। बकुल, चंपक, केतकी, मालती, मोगरा, कुंद, मुचकुंद, तरह-तरह के सुगन्धित कमल हर्षक, उत्पन्न हुए कर्पूर के रजःकर्ण, कस्तूरी आदि उपरोक्त वस्तुएं सजा कर रखी। रत्नसारकुमार ने तापसकुमार की की हुई भक्ती की रचना अंगीकार करने के हेतु उन वस्तुओं पर आदरसहित एक दृष्टि फिरायी और थोड़ी-थोड़ी सब वस्तुएं भक्षण की। पश्चात् तापसकुमार ने तोते को भी उत्तमोत्तम फल व अश्वको उसके अनुकूल वस्तु खिलायी। ठीक है-महान् पुरुष किसी समय भी उचित आचरण नहीं छोड़ते। तदनंतर रत्नसारकुमार का अभिप्राय समझ तोता तापसकुमार को प्रीति पूर्वक पूछने लगा कि, 'हे तापसकुमार! जिसको देखते ही शरीर पुलकित हो जाता है ऐसे इस नवयौवन में कल्पना भी नहीं की जा सके ऐसा यह तापसव्रत तूने क्यों ग्रहण किया? कहांतो सर्वसंपदाओं के सुरक्षित कोट के समान यह तेरा सुंदर स्वरूप, और कहां यह संसार पर तिरस्कार उत्पन्न करनेवाला तापसव्रत? जैसे अरण्य में मालती का पुष्प किसी के भोग में न आकर व्यर्थ सूख जाता है। वैसे ही तूने तेरा यह चातुर्य और सौंदर्य प्रथम से ही तापसव्रत ग्रहणकर निष्फल कैसे कर डाला? दिव्य अलंकार और दिव्य वेष पहनने लायक यह कमल से भी कोमल शरीर अतिशय कठोर वल्कलों को किस प्रकार सहन कर सकता है? दर्शक की दृष्टि को मृगजाल सदृश बंधन में डालनेवाला तेरा यह केशपाश क्रूरजटाबंध को सहने योग्य नहीं। तेरा यह सुन्दर तारुण्य और पवित्र लावण्य यथायोग्य नये-नये भोगोपभोगों से शून्य होने के कारण हमको बहुत दया उत्पन्न करता है। इसलिए हे तापसकुमार! वैराग्य से, कपटचातुरी से, दुर्दैववश हीनकर्म से, किसीके बलात्कार से, किसी महातपस्वी के शाप से अथवा किस अन्य कारण से तूने यह महाकठिन तपस्या अंगीकार की है' सो कह। पोपट के इस प्रश्न पर तापसकुमार नेत्रों से अश्रुधारा गिराता हुआ गद्गद्स्वर से बोला—'हे चतुर तोते! हे श्रेष्ठ कुमार! जगत् में ऐसा कौन है जो तुम्हारी समानता कर
SR No.002285
Book TitleShraddhvidhi Prakaranam Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherJayanandvijay
Publication Year2005
Total Pages400
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size8 MB
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