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श्राद्धविधि प्रकरणम्
263 पड़ता है। दूसरों का तिरस्कार करनेवाली इस अतिशय उतावल का क्या कारण है? और मेरे साथ तू प्रीति करना चाहता है इसका भी क्या कारण है?'
तापसकुमार का ऐसा मनोहर भाषण भली प्रकार सुनकर अकेला रत्नसारकुमार ही नहीं बल्कि अश्व भी उत्सुक हुआ। जिससे कुमार का मन जैसे वहां रहा वैसे वह अश्व भी वहां स्थिर खड़ा रहा। उत्तम अश्वों का वर्ताव सवार की इच्छानुकूल ही होता है। रलसार, तापसकुमार के सौंदर्य से तथा वाक्पटुता से मोहित होने के कारण तथा उत्तर देने योग्य बात न होने से कुछ भी प्रत्युत्तर न दे सका इतने में ही वह चतुरतोता वाचाल मनुष्य की तरह उच्च स्वर से बोलने लगा। 'हे तापसकुमार! कुमार का कुलआदि पूछने का क्या प्रयोजन है? अभी तूने यहां कोई विवाह तो रचा ही नहीं। उचित आचरण का आचरण करने में तू चतुर है, तो भी तुझे उनका वर्णन कहता हूं। सर्वव्रतधारियों को आगन्तुक अतिथि सर्व प्रकार पूजने योग्य है। लौकिकशास्त्रकारों ने कहा है कि चारों वर्गों का गुरु ब्राह्मण है, और ब्राह्मण का गुरु अग्नि है, स्त्रियों का पति ही एक गुरु है, और सर्वलोगों का गुरु घर आया हुआ अतिथि है। इसलिए हे तापसकुमार! जो तेरा चित्त इस कुमार पर हो तो इसकी यथारीति से आतीथ्य कर। अन्य सर्व विचारों को अलग कर दे।' . तोते की इस चतुरयुक्ति से प्रसन्न हो तापसकुमार ने रत्नहार सदृश अपनी कमलमाला झट उसके (तोते के) गले में पहनायी। और रत्नसार से कहा कि, 'हे श्रेष्ठकुमार! तू ही संसार में प्रशंसा करने के योग्य है। कारण कि तेरा तोता भी वचनचातुरी में बड़ा ही निपुण है। तेरा सौभाग्य सब मनुष्यों से श्रेष्ठ है। अतएव हे कुमार! अब अश्व परसे उतर, मेरा भाव ध्यान में लेकर मेरा अतिथिसत्कार स्वीकार कर, और हमको कृतार्थकर। विकसित कमलों से सुशोभित और निर्मलजल युक्त यह छोटासा तालाब है, यह समस्त सुन्दर वन का समुदाय है और हम तेरे सेवक हैं, मेरे समान तापस तेरा क्या आतिथ्य करेगा? नग्नक्षपणक के मठ में राजा की आसनावासना (आदर-सत्कार) कैसे हो? तथापि मैं अपनी शक्ति के अनुसार कुछ भक्ति दिखाता हूं। क्या समय पाकर केले का झाड़ अपने नीचे बैठनेवाले को सुख विश्रांति नहीं देता? इसलिए शीघ्र कृपा कर आज मेरा विनय स्वीकार कर देशाटन करनेवाले सत्पुरुष किसीकी विनती किसी समय भी व्यर्थ नहीं जाने देते हैं।' रत्नसार के मन में अश्व पर से उतरने के लिए प्रथम से ही मन में विचार आया था, पश्चात् मानो शुभ शकुन हुए हों, ऐसे तापसकुमार के वचन सुनकर वह नीचे उतरा। चिरपरिचित मित्र की तरह मन से तो वे प्रथम ही मिल गये थे, अब उन्होंने एक दूसरे के शरीर को आलिंगन करके मिलाप किया व पारस्परिक प्रीति को दृढ़ रखने के हेतु से एक दूसरे से हस्तमिलापकर वे दोनों कुछ देर तक इधर-उधर फिरते रहे। उस समय उनकी शोभा वन में क्रीड़ा करते हुए दो हाथी के बच्चों के समान मालूम होती थी। ... तापसकुमार ने उस वन में के पर्वत, नदियां, तालाब, क्रीडास्थल आदि रत्नसार