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________________ 262 श्राद्धविधि प्रकरणम् प्राप्ति होने से अपरिमित अहंकार में आकर वेग से गमनकर कुमार के मित्रों के अश्वों को नगर की सीमा में ही छोड़ दिये। जिससे निरुत्साहित हो वे विलक्ष होकर वहीं खड़े रह गये। अतिशय उछलकर तथा शरीर से प्रायः अधर चलनेवाला वह अश्व मानो शरीर में रज लग जाने के भय से भूमि को स्पर्श भी नहीं करता था। उस समय नदियां, पर्वत, जंगल की भूमि आदि मानो उस अश्व के साथ स्पर्धा से वेगपूर्वक चलती हों इस प्रकार चारों ओर दृष्टि पथ में आती थी। मानो कौतुक से उत्सुक हुए कुमार के मन की प्रेरण! से ही झड़प से भूमि का उल्लंघन करनेवाले उस अश्व ने अपनी थकावट की ओर जरा भी ध्यान नहीं पहुंचाया। इस तरह वह अत्यंत भिल्लसैन्य युक्त महाभयंकर 'शबरसेना' नामक घोरवन में आया। वह वन सुननेवाले को भय व उन्माद करानेवाला, तथा अत्यंत तीक्ष्णजंगली जानवरों की गर्जना से ऐसा लगता था मानो संपूर्णवनों में मुख्य यही वन है। गज, सिंह, बाघ, सूअर पाड़े आदि मानो कुमार को कौतुक दिखाने के लिए ही चारों ओर परस्पर लड़ रहे थे। शियालों का शब्द ऐसा मालूम होता था कि मानो अपूर्व वस्तु के लाभ लेने के व कौतुक देखने के लिए वे कुमार को शीघ्र बुला रहे हैं। उस वन के वृक्ष अपनी धूजती हुई शाखा से अश्व के द्रुत वेग को देखकर चमत्कार पा नतमस्तक हो रहे थे।स्थान-स्थान परकुमारका मनोरंजन करने के निमित्त भिल्लयुवतियां किन्नरियों की तरह मधुरस्वर से उद्भट गीत गा रही थीं। आगे जाकर रत्नसारकुमार ने हिंडोले पर झूलते हुए एक तापसकुमार को स्नेहभरी दृष्टि से देखा। वह तापसकुमार मृत्युलोक में आये हुए नागकुमार के सदृश सुंदर था। उसकी दृष्टि प्रियबांधव के समान स्नेहयुक्त नजर आती थी; और उसे देखते ही ऐसा प्रतीत होता था, कि मानो अब देखने के योग्य वस्तु न रही। उस तापसकुमार ने ज्यों ही कामदेव के सदृश रूपशाली रत्नसारकुमार को देखा त्यों हीवर को देखकर जैसे कन्या के मन में लज्जादि उत्पन्न होते हैं वैसे उसके मन में लज्जा, उत्सुकता, हर्ष इत्यादि मनोविकार उत्पन्न हुए और वह मन में शून्य सम हो गया था तथापि किसी प्रकार धैर्य धरकर हिंडोले पर से उतरकर उसने रत्नसारकुमार से इस प्रकार प्रश्न किये। 'हे जगद्वल्लभ! हे सौभाग्यनिधे! हम पर प्रसन्न दृष्टि रख, स्थिरता धारण कर, प्रमाद न कर और हमारे साथ बातचीत कर। कौनसा भाग्यशाली देश व नगर तेरे निवास से जगत् में श्रेष्ठ व प्रशंसनीय हुआ? तेरे जन्म से कौनसा कुल उत्सव से परिपूर्ण हुआ? तेरे सम्बन्ध से कौनसी जाति जुही के पुष्प समान सुगन्धित हुई? जिसकी हम प्रशंसा करें। ऐसा त्रैलोक्य को आनंद पहुंचानेवाला तेरा पिता कौन है? तेरी पूजनीय मान्य माता कौन है? हे सुन्दरशिरोमणि! जिनके साथ तू प्रीति रखता है, वे सज्जन की तरह जगत् को आनन्द देनेवाले तेरे स्वजन कौन हैं? संसार में जिस संबोधन से तेरी पहिचान होती है वह तेरा श्रेष्ठ नाम क्या है? अपने इष्टजनों के वियोग का तुझे क्या कारण उत्पन्न हुआ? कारण कि, तू किसी मित्र के बिना अकेला ही दिख
SR No.002285
Book TitleShraddhvidhi Prakaranam Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherJayanandvijay
Publication Year2005
Total Pages400
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size8 MB
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