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________________ 252 श्राद्धविधि प्रकरणम् पुरुषों को मलीन दर्पण में अपना मुंह आदि न देखना तथा दीर्घायु के इच्छुक मनुष्य को रात्रि में भी अपना मुख दर्पण में नहीं देखना चाहिए। हे राजन्! पंडितपुरुष को एक कमल (सूर्यविकासी कमल) और कुवलय (रक्त कमल) छोड़कर लालमाला धारण नहीं करना, बल्कि सफेद धारण करना। हे राजन! सोते, देवपूजा करते तथा सभा में जाते पहनने के वस्त्र भिन्न-भिन्न रखना। बोलने की तथा हाथ पग की चपलता, अतिशय भोजन, शय्या के ऊपर दीपक तथा अधमपुरुष और खम्भे की छाया इतनी वस्तुओं से अवश्य दूर रहना। नाक खुतरना नहीं, स्वयं अपने जूते नहीं उठाना, सिर पर बोझ नहीं उठाना, पानी बरसते समय न दौड़ना, पात्र के टूटने से प्रायः कलह होता है, और खाट टूटे तो वाहन का क्षय होता है। जहां श्वान और कुक्कुट (मुर्गा) बसता हो वहां पितृ अपना पिंड ग्रहण नहीं करते। गृहस्थ ने तैयार किये हुए अन्न से प्रथम सुवासिनी स्त्री, गर्भिणी, वृद्ध, बालक, रोगी इनको भोजन कराना, तत्पश्चात् अपने को अन्न ग्रहण करना। हे पाण्डवश्रेष्ठ! गाय, बैल आदि को घर में बन्धन में रख तथा देखनेवाले मनुष्यों को कुछ भी भाग न देकर स्वयं जो मनुष्य अकेला भोजन करता है वह केवल पाप ही भक्षण करता है। गृह की वृद्धि के इच्छुक गृहस्थ को अपनी जाति के वृद्ध मनुष्य और अपने दरिद्री हुए मित्र को अपने घर में रखना। स्वार्थ साधन के हेतु सदैव अपमान को आगे तथा मान को पीछे रखना, कारण कि स्वार्थ से भ्रष्ट होना मूर्खता है। थोड़े से लाभ के लिए विशेष हानि न सहना। थोड़ा खर्च करके अधिक बचाना इसी में चतुराई है। लेना, देना तथा अन्य कर्तव्य कर्म उचित समय पर जो शीघ्र न किये जाय तो उनके अन्दर रहा हुआ रस काल चूस लेता है। जहां जाने पर आदर सत्कार नहीं मिलता, मधुर वार्तालाप नहीं होता, गुणदोष की भी बात नहीं होती, उसके घर कभी गमन नहीं करना। हे अर्जुन! बिना बुलाये घर में प्रवेश करे, बिना पूछे बहुत बोले, तथा बिना दिये आसन पर आप ही बैठ जाये वह मनुष्य अधम है। शरीर में शक्ति न हो और क्रोध करे, निर्धन हो और मान की इच्छा करे, और स्वयं निर्गुणी हो और गुणी पुरुष से द्वेष करे, ये तीनों व्यक्ति जगत् में काष्ठ के तुल्य हैं। माता-पिता का पोषण न करनेवाला, क्रिया के उद्देश्य से याचना करनेवाला और मृतपुरुष का शय्यादान लेनेवाला इन तीनों को पुनः मनुष्य-भव दुर्लभ है। अक्षयलक्ष्मी के इच्छुक मनुष्य को बलिष्ठ पुरुष के सपाटे में आते समय बेत के समान नम्र हो जाना चाहिए, सर्प की तरह कभी सामना नहीं करना। बेत की तरह नम्र रहनेवाला मनुष्य समय पाकर पुनः लक्ष्मी पाता है, परन्तु सर्प की तरह सामना करनेवाला मनुष्य केवल मृत्यु पात्र हो सकता है, बुद्धिशाली मनुष्यों को समय पर कछुवे की तरह अंगोपांग संकुचितकर ताड़ना सहन करना व अपना समय आने पर काले सर्प की तरह सामना करना चाहिए। ऐक्यता से रहनेवाले लोग चाहे कितने ही तुच्छ हों परन्तु उनको बलिष्ठ लोग सता नहीं सकते; देखो, सामने का पवन होवे तो भी वह एक जत्थे में रही हुई
SR No.002285
Book TitleShraddhvidhi Prakaranam Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherJayanandvijay
Publication Year2005
Total Pages400
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size8 MB
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