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श्राद्धविधि प्रकरणम् .
251 लेना, बाल बिखरे हुए रखकर भोजन नहीं करना, नग्न होकर नहीं नहाना, नग्न होकर नहीं सोना, अधिक समय तक हाथ आदि झूठे न रखना, मस्तक के आश्रय में सर्व प्राण रहता है अतएव मस्तक को झठे हाथ नहीं लगाना, मस्तक के बाल नहीं पकड़ना तथा प्रहार भी नहीं करना। पुत्र अथवा शिष्य के अतिरिक्त शिक्षा के हेतु किसीको ताड़ना नहीं करना, दोनों हाथों से मस्तक कभी न खुजाना। अकारण बार-बार सिर न धोना। [ग्रहण के सिवाय रात्रि में नहाना अच्छा नहीं। इसी प्रकार भोजन के अनंतर तथा गहरे पानी में भी नहीं नहाना। गुरु का दोष न कहना, क्रोधित होने पर गुरु को प्रसन्न करना। तथा गुरु निन्दा श्रवण नहीं करना। हे भारत! गुरु, सती स्त्रियाँ, धर्मी पुरुष तथा तपस्वियों की हंसी में भी निन्दा न करनी चाहिए। किसीकी वस्तु न चुराना, किंचित्मात्र भी कटुवचन नहीं बोलना, मधुर वचन भी मिथ्या न बोलना, परदोष न कहना, महापाप से पतित लोगों के साथ वार्तालाप न करना, एक आसन पर न बैठना, उनके हाथ का अन्न ग्रहण नहीं करना तथा उनके साथ कोई भी कार्य नहीं करना।
चतुर मनुष्य को लोक में निन्दा पाये हुए पतित, उन्मत्त, बहुत से लोगों के साथ वैर करनेवाले और मूर्ख के साथ मित्रता नहीं करनी तथा अकेले मार्ग प्रवास न करना, हे राजन! भयंकर रथ में न बैठना, किनारे पर आयी हुई छाया में न बैठना तथा आगे होकर जल के वेग के संमुख न जाना। जलते हुए घर में प्रवेश न करना, पर्वत की चोटी पर न चढ़ना, मुख ढांके बिना जंभाई, खांसी तथा श्वास न लेना। चलते समय ऊंची, इधर-उधर तथा दूर दृष्टि न रखना, पैर के आगे चार हाथ के बराबर भूमि पर दृष्टि रखकर चलना। अधिक न हंसना, सीटी आदि न बजाना, बोलते हुए वातनिसर्ग न करना, दांत से नख न तोड़ना तथा पैर पर पैर चढ़ाकर न बैठना, दाढी मूंछ के बालन चबाना, बार-बार होंठ दांत में न पकड़ना, झूठा अन्नादि भक्षण न करना तथा किसी भीस्थान में चोर मार्ग से प्रवेश न करना। उन्हाले तथा चौमासे की ऋतु में छत्री लेकर तथा रात्रि में अथवा वन में जाना हो तो लकड़ी लेकर जाना। जूते, वस्त्र और माला ये
तीनों वस्तुएं किसीकी पहिनी हुई हों तो धारण नहीं करना। स्त्रियों में ईर्ष्या नहीं करना • तथा अपनी स्त्री का यत्नपूर्वक रक्षण करना, ईर्ष्या रखने से आयुष्य घटता है, अतएव
उसका त्याग करना। हे महाराज! संध्या में जल का व्यवहार, दही और सत्तू वैसे ही रात्रि में भोजन का त्याग करना, चतुर मनुष्य को अधिक देर तक घुटने ऊंचे करके नहीं सोना, गोदोहिका (उंकडूं) आसन से नहीं बैठना तथा पग से आसन बँचकर भी न बैठना।
बिलकुल प्रातःकाल में, बिलकुल संध्या के समय, ठीक मध्याह्न में, अकस्मात से अथवा अजान मनुष्य के संग में कहीं भी गमन न करना। हे महाराज! बुद्धिशाली ... यह कथन महाभारत ग्रंथ का है, जो लौकिक है, ग्रहण के लिए रात को स्नान की बात कही - इससे यह न माने की रात को स्नान करने का विधान है। विशेष में वर्तमान में रात को स्नानकर पूजा करनेवाले भी सोचें!