________________
236
श्राद्धविधि प्रकरणम् किसी नगर में मंथर नामक एक कोली था। वह बुनने की लकडी आदि बनाने के लिए जंगल में लकडी लेने गया। वहां एक शीसम के वृक्ष को काटते हुए उसके अधिष्ठायक व्यंतर ने मना किया, तो भी वह साहसपूर्वक तोड़ने लगा, तब व्यंतर ने उसको कहा—'वर मांग' कोली स्त्रीलंपट होने के कारण स्त्री को पूछने गया। मार्ग में उसका एक नाई मित्र मिला। उसने सलाह दी कि 'तू राज्य मांग।' तो भी उसने स्त्री को पूछा। स्त्री तुच्छ स्वभाव की थी इससे एक वचन उसे स्मरण हुआ कि
प्रवर्धमानः पुरुषत्रयाणामुपघात्कृत्।
पूर्वोपार्जितमित्राणां, दाराणामथ वेश्मनाम् ।।१।। अर्थः पुरुष लक्ष्मी के लाभ से विशेष वृद्धि को प्राप्त हो जाये तो अपने पुराने
मित्र, स्त्री और घर इन तीन वस्तुओं को छोड़ देता है। यह विचारकर उसने पति से कहा कि, अत्यन्त दुःखदायी राज्य लेकर क्या करना है? दूसरे दो हाथ और एक मस्तक मांगो ताकि तुम दो वस्त्र एक ही साथ बनालोगे। तदनन्तर कोली ने स्त्री के कथनानुसार वर मांगा व व्यंतर ने दे दिया, परन्तु लोगों ने ऐसे विलक्षण स्वरूप से उस कोली को ग्राम में प्रवेश करते देख
राक्षस समझकर लकड़ी पत्थर आदि से मार डाला। कहा है किजिस व्यक्ति में स्वयं बुद्धि नहीं तथा जो मित्र की सलाह भी नहीं मानता तथा स्त्री के वश में रहता है, वह मंथर कोली की तरह नष्ट हो जाता है। ऐसी बातें क्वचित् ही देखने में आती हैं इसलिए सुशिक्षित और बुद्धिशाली स्त्री हो तो उसकी सलाह मसलत लेने से लाभ ही होता है। इस विषय में अनुपमादेवी और वस्तुपाल तेजपाल का उत्कृष्ट उदाहरण है।
सुकुलुग्गयाहिं परिणयवयाहिं निच्छम्मधम्मनिरयाहिं।
सयणरमणीहिं पीई, पाठणइ समाणधम्माहिं ॥१७॥ अर्थः श्रेष्ठकुल में उत्पन्न हुई, प्रौढावस्था बाली,कपट रहित, धर्मरत, साधर्मिक
और अपने सगे सम्बन्धी की स्त्रियों के साथ अपनी स्त्री की प्रीति कराना चाहिए। श्रेष्ठकुलोत्पन्न स्त्री के साथ संगति करने का कारण यह है कि, नीचकुल में उत्पन्न हुई स्त्री के साथ रहना यह कुल-स्त्रियों को अपवाद की जड़ है। रोगाइसु नोविक्खइ, सुसहाओ होइ धम्मकज्जेसु।
एमाइ पणइणिगयं, उचिअंपारण पुरिसस्स ॥१८॥ अर्थः स्त्री को रोगादिक हो तो पुरुष उसकी उपेक्षा न करे, तपस्या, उजमणा,
दान, देवपूजा, तीर्थयात्रा आदि धर्मकृत्यों में स्त्री का उत्साह बढ़ाकर उसे द्रव्य आदि देकर उसकी सहायता करे, अंतराय कभी न करे। कारण कि, पुरुष स्त्री के पुण्य का भागीदार है। तथा धर्मकृत्य कराना यही परम