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________________ 235 श्राद्धविधि प्रकरणम् अक्षालितपदः शेते, भार्याद्वयवशो नरः ।।१।। वरं कारागृहे क्षिप्तो, वरं देशान्तरभ्रमी। वरं नरकसञ्चारी, न द्विभार्यः पुनः पुमान् ।।२।। दो स्त्रियों के वश में पड़ा हुआ मनुष्य घर में से भूखा बाहर जाता है, घर में पानी की एक बूंद भी नहीं पीता और पैर धोये बिना ही सोता है। पुरुष कारागृह में पटक दिया जाय, देशान्तर में भटकता रहे अथवा नरकवास भोगे वह कुछ ठीक है, परन्तु दो स्त्रियों का पति होना ठीक नहीं। ___ कदाचित् किसी योग्य कारण से पुरुष को दो स्त्रियों से विवाह करना पड़े तो उन दोनों में तथा उनकी संतान में सदैव समदृष्टि रखना। कभी किसीकी पारी खंडित न करना। कारण कि सोत की पारी तोड़कर अपने पति के साथ रतिक्रीड़ा करनेवाली स्त्री को चौथे व्रत का अतिचार लगता है ऐसा कहा है। २ विशेष क्रोधित होने पर उसे समझाने का कारण यह है कि, वैसा न करने से कदाचित् वह सोमदत्त की स्त्री की तरह अचानक कुए में जा गिरे अथवा ऐसा ही कुछ अन्य अपकृत्य करे, इसीलिए स्त्रियों के साथ सदा नरमाई का बर्ताव करना चाहिए। कभी कठोरता न बताना। कहा है कि, 'पाञ्चालः स्त्रीषु मार्दवम्' (पाञ्चाल ऋषि कहते हैं कि, स्त्रियों से नरमाई रखना।) नरमाई से ही स्त्रियां वश में होती हैं,कारण कि, इसी रीति से उनसे सर्वकार्य सिद्ध हुए देखने में आते हैं; और यदि नरमाई न हो तो कार्यसिद्धि के बदले कार्य में बिगाड़ हुआ भी अनुभव में आता है। निर्गुणी स्त्री हो तो अधिक नरमाई से काम लेने की चिन्ता रखना चाहिए। देह में जीव है तब तक मजबूत बेड़ी के समान साथ लगी हुई उस निर्गुणी स्त्री से ही किसी भी प्रकार से गृहसूत्र चलाना तथा सर्वप्रकार से निर्वाह कर लेना चाहिए।' कारण कि, 'गृहिणी वही घर' ऐसा शास्त्रवचन है। ३ 'धन के लाभहानि की बात न करना' ऐसा कहने का कारण यह है कि, पुरुष धन का लाभ स्त्रीसंमुख प्रकट करे, तो वह अपरिमित द्रव्य खर्च करने लगे और उसके संमुख धनहानि की बात करे तो वह तुच्छता से जहां-तहां वह बात प्रकटकर पति का चिरकाल संचित बडप्पन गुमावे। ४ घर की गुप्त सलाह उसके संमुख प्रकट न करने का कारण यह है कि, स्त्री स्वभाव से ही कोमल हृदयवाली होने से उसके हृदय में गुप्त बात रह नहीं सकती, वह अपनी सहेलियों आदि के संमुख प्रकट कर देती है, जिससे निश्चित किये हुए भावी-कार्य निष्फल हो जाते हैं। कदाचित् कोई गुप्त बात उसके मुख से प्रकट होने से राज्यद्रोह का विवाद भी खड़ा हो जाये, इसीलिए घर में स्त्री का मुख्य चलन नहीं रखना चाहिए। कहा है कि-'स्त्री पुंवच्च प्रभवति यदा तद्धि गेहं विनष्टम्' (स्त्री पुरुष के समान प्रबल हो जाये तो वह घर धूल में मिल गया ऐसा समझो।) इस विषय पर एक दृष्टान्त कहते हैं, कि१. थोड़े से अपराध में घर से बाहर निकालनेवाले, संबंध विच्छेद करनेवाले पतिदेव सोचें।
SR No.002285
Book TitleShraddhvidhi Prakaranam Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherJayanandvijay
Publication Year2005
Total Pages400
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size8 MB
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