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________________ 234 श्राद्धविधि प्रकरणम् रोकने का कारण यह है कि, मुनिराज की तरह कुलीन स्त्रियों को भी रात्रि में बाहिर हिरना फिरना घोर अनर्थकारी है। धर्म सम्बन्धी आवश्यक आदि कृत्य के लिए भेजना हो तो माता, बहिन आदि सुशील स्त्रियों के समुदाय के साथ ही जाने की आज्ञा देनी चाहिए। के गृहकृत्य इस प्रकार हैं बिछौना आदि उठाना, गृह साफ करना, पानी छानना, चूल्हा तैयार करना, बरतन धोना, धान्य पीसना तथा कूटना, गायें दोहना, दही बिलौना, रसोई बनाना, उचित रीति से अन्न परोसना, बरतन आदि ठीक करना, तथा सासू, भर्तार, ननद, देवर आदि का विनय करना आदि। स्त्रियों को गृहकृत्यों में अवश्य लगाने का कारण यह है कि, ऐसा न करने से स्त्री सर्वदा उदास रहती है। स्त्रियों के उदासीन होने से गृहकृत्य बिगड़ते हैं। स्त्रियों को कोई उद्यम न हो तो वे चपल स्वभाव से बिगड़ती हैं।' गृहकृत्यों में स्त्रियों का मन लगा देने से ही उनकी रक्षा होती है। श्री उमास्वातिवाचकजी ने प्रशमरति ग्रन्थ में कहा है कि, पुरुष को पिशाच का आख्यान सुनकर और कुल स्त्री का निरन्तर रक्षण हुआ देखकर अपनी आत्मा को संयम योग से सदैव उद्यम में रखना । स्त्री को अपने से अलग नहीं रखना यह कहा इसका कारण यह है कि, प्रायः परस्पर दर्शन में ही प्रेम का वास है। कहा है कि देखने से, वार्तालाप करने से, गुण के वर्णन से, इष्टवस्तु देने से, और मन के अनुसार वर्ताव करने से पुरुष में स्त्री का प्रेम दृढ़ होता है। न देखने से, अतिशय देखने से, मिलने पर न बोलने से, अहंकार से और अपमान से प्रेम घटता है। पुरुष नित्य देशाटन करता रहे तो स्त्री का मन उस पर से उतर जाता है, और उससे कदाचित् वह अनुचित कृत्य भी करने लगती है, इसलिए स्त्री को अपने से अलग न रखना चाहिए। अवमाणं न पयंसइ, खलिए सिक्खेइ कुविअमणुणे | धणहाणिवुड्डिघरमंतवइयरं पयडइ न तीसे ||१६|| अर्थ ः पुरुष अकारण क्रोधादिक से अपनी स्त्री के सन्मुख 'तेरे ऊपर और विवाह कर लूंगा' ऐसे अपमानजनक वचन प्रकट न करे। कुछ अपराध भी हुआ हो तो उसको एकान्त में ऐसी शिक्षा दे कि जिससे वह पुनः वैसा अपराध न करे। विशेष क्रोधित हो गयी हो तो उसे समझावे, धन के लाभहानि की बात तथा घर में गुप्त सलाह उसके संमुख प्रकट न करे? 'तेरे ऊपर और विवाह कर लूंगा' ऐसे वचन न बोलने का यह कारण है कि, कौन ऐसा मूर्ख है, जो स्त्री के ऊपर क्रोध आदि आने से दूसरी स्त्री से विवाह करने के संकट में पड़े? कहा है कि बुभुक्षितो गृहाद्याति, नाप्नोत्यम्बुच्छटामपि । १. युवा रसोये को रखनेवाले सोचें।
SR No.002285
Book TitleShraddhvidhi Prakaranam Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherJayanandvijay
Publication Year2005
Total Pages400
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size8 MB
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