________________
श्राद्धविधि प्रकरणम्
229 उष्णोदक और शीतोदक इन तीन प्रकार के जलों से स्नान करावे, संपूर्ण आभूषणों से सुसज्जित करे, पाकशास्त्र की रीति से तैयार किया हुआ अट्ठारह जाति के शाकयुक्त रुचि के अनुसार भोजन करावे, और आजीवन अपने कंधे पर धारण करे तो भी वह माता-पिता के उपकार का बदला नहीं दे सकता, परन्तु यदि वह पुरुष अपने माता-पिता को केवलि भाषित धर्म सुनाकर मन में बराबर उतारे तथा धर्म के मूलभेद और उत्तर भेद की प्ररूपणाकर उस धर्म में स्थापन करनेवाला हो जाय तभी उसके उपकार का बदला दिया जा सकता है। केइ महच्चे दरिदं समुक्कसिज्जा, तए णं से दरिद्दे समुक्किडे समाणे पच्छा पुरं च णं विउलभोगसमिइसमण्णागए आवि विहरिज्जा। तरणं स महच्चे अन्नया कयाइ दरिद्दी हूए समाणे तस्स दरिदस्स अंतिअं हवमगच्छिज्जा। तए णं से दरिदे तस्स भट्टिस्स सव्वस्समवि दलमाणे तेणावि तस्स दुप्पडियारं भवइ अहे णं से तं मट्टि केवलिपन्नत्ते धम्मे आघवइत्ता जाव ठावइत्ता भवइ तेणामेव तस्स मट्टिस्स सुप्पडियारं भवइ २।। कोई धनाढ्य पुरुष किसी दरिद्री मनुष्य को धनादि देकर सुदशा में लावे, और वह मनुष्य सुदशा में आया, उस समय की तरह उसके बाद भी सुखपूर्वक रहे, पश्चात् उक्त धनाढ्य किसी भी समय स्वयं दरिद्री होकर उसके पास आवे, तब वह अपने उस स्वामी को चाहे सर्वस्व अर्पण कर दे, तो भी वह उसके उपकार का बदला नहीं चुका सकता। परन्तु यदि वह अपने स्वामी को केवलिभाषित धर्म समझाकर और अंतर्भद सहित की प्ररूपणाकर उस धर्म में स्थापन करे, तभी वह स्वामी के उपकार का बदला चुका सकता है। केइ तहारूवस्स समणस्स वा माहणस्स वा अंतिए एगमवि आरिअं धम्मिअंसुवयणं सुच्चा निसम्म कालमासे कालं किच्चा अन्नयरेतु देवलोगेसु देवत्ताए उववण्णे।। तए णं से देवे तं धम्मायरियं दुभिक्खाओ वा देसाओ सुभिक्खं देसं साहरिज्जा, कंताराओ निक्कंतारं करिज्जा, दीहकालिएणं वा रोगायंकेण अभिभूअ विमोइज्जा, तेणावि तस्स धम्मायरियस्स दुप्पडियारं भवइ। अहे णं से तं धम्मायरिअं केवलिपन्नत्ताओ धम्माओ भटुं समाणं भुज्जो केवलिपन्नते धम्मे आघवइत्ता जाव ठावइत्ता भवइ तेणामेव तस्स धम्मायरियस्स सुप्पडियारं भवइ ३।। कोई पुरुष सिद्धान्त में कहे हुए लक्षणयुक्त श्रमण माहण (धर्माचार्य) से