SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 234
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 223 श्राद्धविधि प्रकरणम् देशादि विरुद्ध कार्य का त्याग : देशविरुद्ध—इसी प्रकार देशादि विरुद्ध बात का त्याग करना चाहिए। यानि जो बात देशविरुद्ध (देश की रूढ़ि के प्रतिकूल) कालविरुद्ध किंवा राजादिविरुद्ध हो उसे छोड़ना। हितोपदेश माला में कहा है कि, जो मनुष्य देश, काल, राजा, लोक तथा धर्म इनमें से किसीके भी प्रतिकूल जो बात हो उसको छोड़ दे, तो वह समकित तथा धर्म को पाता है। ___सौवीर (सिंध) देश में खेती और लाट (भरुच्छ प्रांत) देश में मद्यसन्धान (दारू बनाना) देशविरुद्ध है। दूसरा भी जिस देश में शिष्टलोगों ने जो मना किया हो, वह उस देश में देशविरुद्ध जानो। अथवा जाति, कुल आदि की रीतिरिवाज को जो अनुचित हो वह देशविरुद्ध कहलाता है। जैसे ब्राह्मण को मद्यपान करना तथा तिल, लवण आदि वस्तु बेचना, यह देशविरुद्ध है। उनके शास्त्र में कहा है कि, तिल का व्यापार करनेवाले ब्राह्मण जगत् में तिल के तुल्य हलके तथा काला काम करने के कारण काले गिने जाते हैं, तथा परलोक में तिल की तरह घाणी में पीले जाते हैं। कुल की रीति के प्रमाण से तो चौलुक्य आदि कुल में उत्पन्न हुए लोगों को मद्यपान करना देशविरुद्ध है अथवा परदेशी लोगों के संमुख उनके देश की निन्दा करना आदि देशविरुद्ध कहलाता है। ___ कालविरुद्ध-शीतकाल में हिमालय पर्वत के समीपस्थ प्रदेश में जहां अत्यन्त शीत पड़ती हो अथवा ग्रीष्मऋतु में मारवाड (बीकानेर प्रांत) के समान अतिशय निर्जलदेश में अथवा वर्षाकाल में जहां अत्यंत जल, दलदल और बहुत ही चिकना कीचड रहता है ऐसे पश्चिम तथा दक्षिण समुद्र के किनारे बसे हुए कोकण आदि देशों में अपनी उचितशक्ति तथा किसीकी योग्य सहायता न होने पर भी जाना तथा बहुत दुष्काल पड़ा हो वहां, दो राजाओं की परस्पर लड़ाई चलती हो वहां, डाका आदि पड़ने से मार्ग बंद हो वहां, सघन वन में तथा सायंकाल आदि भयंकर समय में अपनी शक्ति के बिना तथा किसीकी सहायता के बिना जाना,कि जिससे प्राण अथवा धन की हानि हो, अथवा अन्य कोई अनर्थ संमुख आवे, सो कालविरुद्ध कहलाता है। अथवा फाल्गुन मास व्यतीत हो जाने के बाद तिल पीलना, तिल का व्यापार करना, अथवा तिल भक्षण करना आदि, वर्षाकाल में चवलाई (तन्दुलादि भाजी) आदि का शाक लेना आदि, तथा जहां बहुत जीवाकुल भूमि हो वहां गाड़े गाड़ी आदि हांकना। ऐसा भारी दोष उपजानेवाला कृत्य करना, वह कालविरुद्ध कहलाता है। राजविरुद्ध राजाआदि के दोष निकालना, राजा के माननीय मंत्री आदि का आदरमान न करना, राजा के विपरीत लोगों की संगति करना, वैरी के स्थान में लोभ से जाना, वैरी के स्थान से आयी हुई व्यक्ति के साथ व्यवहारादि रखना,राजा की कृपा है ऐसा समझकर उसके किये हुए कार्यों में भी फेरफार करना, नगर के शिष्टलोगों से विपरीत चलना, अपने स्वामी के साथ नमकहरामीकरना इत्यादिराज्यविरुद्ध कहलाता है। उसका परिणाम बड़ा ही दुःसह है। जैसे भुवनभानु केवली का जीव रोहिणी हुई।
SR No.002285
Book TitleShraddhvidhi Prakaranam Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherJayanandvijay
Publication Year2005
Total Pages400
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy