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________________ 210 श्राद्धविधि प्रकरणम् न करना तथा यत्नपूर्वक जाना उचित है। परदेश में व्यापार करना पड़े अथवा रहना पड़े तो भी इसी रीति से करना । कारण कि एक भाग्यशाली के साथ में होने से सबका विघ्न टलता है। इस विषय पर दृष्टान्त है, वह इस प्रकार भाग्यशाली : इक्कीस मनुष्य वर्षाकाल में किसी ग्राम को जा रहे थे। संध्या समय वे एकमंदिर में ठहरे। वहां बिजली बार - बार मंदिर के द्वार तक आकर जाने लगी। उन सबने भयातुर होकर कहा कि, 'अपने में कोई अभागी मनुष्य है, इसलिए एक-एक व्यक्ति मंदिर की चारों ओर प्रदक्षिणा देकर यहां आये ।' तदनुसार बीस जनों ने अनुक्रम से प्रदक्षिणा देकर मंदिर में प्रवेश किया। इक्कीसवां मनुष्य बाहर नहीं निकलता था, उसे शेष सबने बलात्कार पूर्वक खींचकर बाहर निकाला। तब बीसों ही पर बिजली गिरी। उनमें एक ही भाग्यशाली था । इत्यादि । अतएव भाग्यशाली पुरुषों के साथ में जाना, तथा जो कुछ लेन-देन हो, अथवा निधि आदि रखना हो, तो वह सब पिता, भाई, पुत्र आदि को नित्य कह देना, उसमें भी परग्राम जाते समय तो अवश्य ही कह देना चाहिए। ऐसा न करने से कदाचित् दुर्दैववश पर गाँव में अथवा मार्ग में अपनी मृत्यु हो जाय, तो धन के होते हुए पिता, भाई, पुत्र आदि को वृथा दुःख भोगना पड़ता है। विवेकी पुरुष को परगांव जाते समय धनादिक की यथोचित चिन्ता करने के लिए कुटुंब के सब लोगों को योग्य शिक्षा देना तथा सबके साथ आदर पूर्वक बातचीत करके जाना। कहा है कि—– जिसको जगत् में जीने की इच्छा हो, उस मनुष्य को पूज्य - पुरुषों का अपमानकर, अपनी स्त्री को कटुवचन कहकर, किसी को ताड़नाकर तथा बालक को रुलाकर परगाँव गमन न करना चाहिए। परगाँव जाने का विचार करते जो कोई उत्सव या पर्व समीप आ गया हो तो वह करके जाना चाहिए। कहा है किउत्सव, भोजन, बड़ा पर्व तथा अन्य भी सर्व मंगलकार्य की उपेक्षा करके तथा जन्म या मरण इन दो प्रकारों के सूतक हो अथवा अपनी स्त्री रजस्वला हो तो परगाँव को गमन न करना चाहिए। इसी प्रकार अन्य विषयों का भी शास्त्रानुसार विचार करना उचित है। कहा भी है कि दूध का भक्षण, रतिक्रीड़ा, स्नान, स्त्री को ताड़ना, वमन तथा थूकना आदि करके या आक्रोश वचन सुनकर परगाँव को न जाना। हजामत कराकर, नेत्रों में आंसू टपकाकर तथा शुभशकुन न होते हों तो परगाँव को न जाना। अपने स्थान से किसी कार्य के निमित्त बाहर जाते जिस भाग की नाड़ी चलती हो, उस तरफ का पैर आगे रखना। इससे मनवांछित कार्य की सिद्धि होती है। ज्ञानीपुरुष को मार्ग में जाते हुए सन्मुख आये हुए रोगी, वृद्ध, ब्राह्मण, अंध, गाय, पूज्यपुरुष, राजा, गर्भिणी स्त्री और सिर पर बोझा होने से नमे हुए पुरुष को प्रथम मार्ग देकर फिर जाना चाहिए। पक्व अथवा अपक्व धान्य, पूजने योग्य मंत्र का मंडल, डाल दिया हुआ उबटन, स्नान का जल, रुधिर, मृतक इनको लांघकर न जाना । थूक, कफ, विष्ठा, मूत्र, प्रज्वलित अग्नि,
SR No.002285
Book TitleShraddhvidhi Prakaranam Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherJayanandvijay
Publication Year2005
Total Pages400
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size8 MB
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