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________________ श्राद्धविधि प्रकरणम् 211 सर्प, मनुष्य और शस्त्र इनका तो कदापि उल्लंघन न करना चाहिए । विवेकीपुरुष को नदी के किनारे तक, गायें बांधने के स्थान तक, बड़ आदि वृक्ष, तालाब, सरोवर, कुआ, बाग इत्यादिक आवे वहां तक अपने स्वजनों को पहुंचाने के लिए जाना चाहिए। कल्याणार्थी पुरुष को रात्रि के समय वृक्ष के नीचे न रहना। उत्सव तथा सूतक समाप्त होने के पूर्व किसी दूरदेश में न जाना। अकेले अपरिचित व्यक्ति अथवा दास के साथ नहीं जाना, तथा मध्याह्न व मध्यरात्रि के समय भी गमन न करना। क्रूरपुरुष, चौकीदार, चुगलखोर, शिल्पकार और अयोग्यमित्र के साथ अधिक बातचीत न करना तथा असमय इनके साथ कहीं भी न जाना । मार्ग में चाहे कितनी ही थकावट पैदा हो पर पाड़ा, गाय और गधे पर न बैठना। मार्ग में हमेशां हाथी से एक हजार, गाड़ी से पांच तथा सींगवाले पशु व घोड़े से दश हाथ दूर रहना चाहिए। साथ में कलेऊ (कुछ भी खाद्य पदार्थ) लिए बिना गमन न करना, जहां मुकाम किया हो वहां अधिक नींद न लेना तथा साथ आनेवाले लोगों का विश्वास नहीं रखना। सैकड़ों कार्य हों तो भी अकेले कहीं न जाना। देखो एक कर्कट (केंकडा) के समान क्षुद्र जीव ने ब्राह्मण की रक्षा की थी। अकेले मनुष्य को किसीके घर नहीं जाना। किसीके घर में आड़े मार्ग से (जो द्वार चालू न हो) उस मार्ग से भी प्रवेश न करना । बुद्धिमान पुरुष को जीर्णनाव में न बैठना, अकेले नदी में प्रवेश न करना और सहोदर भाई के साथ मार्गप्रवास नहीं करना । अपने पास साधन न हो तो जल तथा थल के विषम प्रदेश, घोरवन तथा गहरेजल का उल्लंघन न करना । जिस समुदाय में बहुत से लोग क्रोधी, सुख के अभिलाषी और कृपण हो वह समुदाय अपना स्वार्थ खो बैठता है। जिसमें सब लोग नालायक होते हैं, सब अपने आपको पंडित मानते हैं, तथा बड़प्पन चाहते हैं वह समुदाय दुर्दशा में आ पड़ता है। जहां कैदियों को तथा फांसी की शिक्षा पाये हुए लोगों को रखते हों, जहां जुआ खेला जाता हो, जहां अपना अनादर होता हो, वहां तथा किसीके खजाने में और अन्तःपुरमें न जाना चाहिए। दुर्गन्धियुक्त स्थल, स्मशान, शून्यस्थान, बाजार, जहां फोतरे व सूखा घास बहुत बिछा हुआ हो, जहां प्रवेश करते बहुत दुःख का अनुभव होता हो तथा जहां कूड़ा कचरा डाला जाता हो ऐसा स्थान, खारी भूमि, वृक्ष का अग्रभाग, पर्वत का शिखर, नदी तथा कुए का किनारा और जहां भस्म, कोयला, बाल और खोपड़ियां पड़ी हों इतने स्थानों में अधिक समय तक खड़े न रहना। अधिक परिश्रम होने पर भी जिस समय जो कार्य करना हो, उसे न छोड़ना । क्लेश के वश हुआ मनुष्य पुरुषार्थ के फल स्वरूप धर्म अर्थ व काम तीनों को नहीं पा सकता। मनुष्य जरा आडम्बर रहित हुआ कि उसका जहां-तहां अनादर होता है, इसलिए किसी भी स्थान में विशेष आडम्बर नहीं छोड़ना । परदेश में जाने पर अपनी योग्यता के अनुसार सर्वांग में विशेष आडम्बर तथा स्वधर्म में परिपूर्ण निष्ठा रखना। कारण कि उसीसे बड़प्पन, आदर तथा निश्चित कार्य की सिद्धि आदि होना संभव है। विशेष लाभ
SR No.002285
Book TitleShraddhvidhi Prakaranam Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherJayanandvijay
Publication Year2005
Total Pages400
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size8 MB
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