SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 217
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 206 श्राद्धविधि प्रकरणम् जगच्चंद्रसूरि का शिष्य भीम नामक सोनी रहता था। एक समय शस्त्रधारी यवनों ने श्री मल्लिनाथजी के मंदिर में भीम को पकड़कर कैद कर लिया, तब भीम के पत्रों ने उसे छुड़ाने के निमित्त चार हजार खोटे टंक उन लोगों को भेट किये। यवनों ने उन टंकों की परीक्षा करवायी तब भीम ने यथार्थ बात कह दी। जिससे प्रसन्न हो उन्होंने भीम को छोड़ दिया, और उसके पुत्रों को उसी समय मार डाले। उनको अग्निदाह देने के अनंतर यवनों ने भोजन किया। वचन देने से उनकी मृत्यु के दिन अभी भी उनके निमित्त वहां श्री मल्लिनाथजी की पूजा आदि होती है। मित्र कैसा करना? : ___विवेकीपुरुष को संकट समय पर सहायता मिले इस हेतु से एक ऐसा मित्र करना कि, जो धर्म से, धन से, प्रतिष्ठा से तथा ऐसे ही अन्य सद्गुणों से अपनी बराबरी का, बुद्धिशाली तथा निर्लोभी हो। रघुकाव्य में कहा है कि राजा के मित्र बिलकुल शक्तिहीन हों तो प्रसंग आने पर कुछ भी उपकार न कर सकें तथा उससे अधिक शक्तिशाली हों तो वे स्पर्धा से वैर आदि करें इसलिए राजा के मित्र मध्यमशक्ति वाले चाहिए। अन्य एक स्थान में भी कहा है कि आगन्तुक आपत्ति को दूर करनेवाला मित्र. मनुष्य को ऐसी अवस्था में सहायता करता है कि, जिस अवस्था में मनुष्य का सहोदर भाई, स्वयं पिता तथा अन्य स्वजन भी उसके पास खड़े न रह सकते हैं। हे लक्ष्मण! अपने से विशेष समर्थ के साथ प्रीति करना मुझे नहीं रुचता। कारण कि, अपन यदि उसके घर जाये तो अपना कुछ भी आदर सत्कार नहीं होता, और वह अपने घर आये तो अपने को शक्ति से अधिक धन व्यय करके उसकी मेहमानी करनी पड़ती है। इस प्रकार यह बात युक्तिवाली है अवश्य तथापि किसी प्रकार जो बड़े के साथ प्रीति हो जाय तो उससे दूसरे से न बन सकें ऐसे अपने कार्य सिद्ध हो सकते हैं, तथा अन्य भी बहुत से लाभ होते हैं। कहा है कि आपणपे प्रभु होइए, के प्रभु कीजे हत्थ। कज्ज करेवा माणुसह, अवरो मग्ग न अच्छ ॥१॥ बड़े मनुष्य की हलके मनुष्य से भी मित्रता करना,कारण कि प्रसंग आने पर वह भी सहायता कर सकता है। पंचोपाख्यान में कहा है कि कर्तव्यान्येव मित्राणि, सबलान्यबलान्यपि। हस्तियूथं वने बद्धं, मूषकेण विमोचितम् ।।१।। बलवान व दुर्बल दोनों प्रकार के मित्र करने चाहिए, देखो, वन में बन्धन में पड़े हुए हाथी के झुंड को चूहे ने छूड़ाया। क्षुद्र जीव से हो सके ऐसे काम सर्व बड़े मनुष्य एकत्र हो जायँ तो भी उनसे नहीं हो सकते। सुई का कार्य सुई ही कर सकती है, वह खड्ग आदि शस्त्रों से नहीं हो सकता। तृण का कार्य तृण ही कर सकता है, हाथी आदि नहीं। कहा भी है कि-तृण,धान्य, नमक, अग्नि, जल,काजल, गोबर, माटी, पत्थर, राख, लोहा, सुई, औषधि चूर्ण और कूची इत्यादि वस्तुएं अपना कार्य आप ही कर
SR No.002285
Book TitleShraddhvidhi Prakaranam Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherJayanandvijay
Publication Year2005
Total Pages400
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy