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श्राद्धविधि प्रकरणम् भूमि खोदना, जिससे पिता का गाड़ा हुआ धन तुझे शीघ्र मिल जायेगा।' सोमदत्त श्रेष्ठी के मुख से यह भावार्थ सुन मुग्ध ने उसीके अनुसार किया जिससे वह धनवान्, सुखी तथा लोकमान्य हो गया यह पुत्र शिक्षा का दृष्टान्त है। उधार :
अतएव उधार का व्यवहार कदापि न रखना। कदाचित् उसके बिना न चले तो सत्य बोलनेवाले लोगों के साथ ही रखना। व्याज भी देश, काल आदि का विचारकर के ही एक, दो, तीन, चार, पांच अथवा इससे अधिक टका लेना, परन्तु वह इस प्रकार कि जिससे श्रेष्ठियों में अपनी हंसी न हो। देनदार को भी कही हुई मुद्दत में ही कर्ज चुका देना चाहिए। कारण कि, मनुष्य की प्रतिष्ठा मुख से निकले हुए वचन को पालने पर ही अवलंबित है। कहा है कि
तत्तिअमित्तं जंपह जत्तिअमित्तस्स निक्कयं वहह।
तं उक्खिवेह भारंजं अद्धपहे न छंडेह ।।१।। जितने वचन का निर्वाह कर सको, उतने ही वचन तुम मुंह से निकालो। आधे मार्ग में डालना न पड़े, उतना ही बोझा प्रथम से उठाना चाहिए। कदाचित् किसी आकस्मिक कारण से धनहानि हो जाये,व उससे निश्चित की हुई कालमर्यादा में ऋण न चुकाया जा सके तो थोड़ा-थोड़ा लेना कबूल कराकर लेनदार को संतोष कराना। ऐसा न करने से विश्वास उठ जाता है, व्यवहार भंग होता है।
विवेकीपुरुष को अपनी पूर्णशक्ति से ऋण चुकाने का प्रयत्न करना। इस भव में तथा परभव में दुःख देनेवाला ऋण क्षणभर भी सिर पर रखे ऐसा कौन मूर्ख होगा? कहा है कि
धर्मारम्भे ऋणच्छेदे, कन्यादाने धनागमे। शस्त्रघातेऽग्निरोगे च, कालक्षेपं न कारयेत् ।।१।। तैलाभ्यङ्गमृणच्छेदं, कन्यामरणमेव च।
एतानि सद्योदुःखानि, परिणामे सुखानि तु ।।२।।
धर्म का आरम्भ, ऋण उतारना, कन्यादान, धनोपार्जन, शत्रुदमन और अग्नि तथा रोग का उपद्रव मिटाना आदि जहां तक हो शीघ्रता से करना। शरीर में तैल मर्दन करना, ऋण उतारना और कन्या की मृत्यु ये तीन बातें प्रथम दुःख देकर पश्चात् सुख देती है। अपना उदरपोषण करने तक को असमर्थ होने से जो ऋण न चुकाया जा सके तो अपनी योग्यता के अनुसार साहुकार की सेवा करके भी ऋण उतारना। अन्यथा आगामी भव में साहुकार के यहां सेवक, मैंसा, बैल, ऊंट, गधा, खच्चर, अश्व आदि होना पड़ता है। साहुकार ने भी जो ऋण चुकाने को असमर्थ हो उससे मांगना नहीं। कारण कि, उससे व्यर्थ संक्लेश तथा पापवृद्धि मात्र होना संभव है। इसलिए ऐसे निर्धन को साहुकार कहे कि, 'तुझमें देने की शक्ति हो तब मेरा द्रव्य चुकाना और न हो तो मेरा इतना द्रव्य धर्मार्थ है।' देनदार को विशेषकाल तक ऋण का सम्बन्ध सिर पर
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