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श्राद्धविधि प्रकरणम् मूल्य की वस्तु गिरवी रखकर करना उचित है। अन्यथा वसूल करने में बड़ा क्लेश तथा विरोध होता है। समय पर धर्म की हानि, तथा धरना देकर बैठना आदि अनेक अनर्थ भी उत्पन्न होते हैं। इस विषय पर एक बात सुनते हैं किपुत्रशिक्षा :
जिनदत्त नामक एक श्रेष्ठी तथा उसका एक मुग्ध नामक पुत्र था। मुग्ध अपने नाम के अनुसार बड़ा ही मुग्ध (भोला) था। अपने पिता की कृपा से वह सुख में लीलालहर करता था। जिनदत्त श्रेष्ठी ने कुलवान नन्दिवर्धन श्रेष्ठी की कन्या के साथ धूमधाम से उसका विवाह किया। आगे जाते जब जिनदत्त ने अपने पुत्र की मुग्धता पूर्ववत् ही देखी तब गूढार्थ-वचनों द्वारा उसे इस तरह उपदेश दिया कि, 'हे वत्स! १ सब जगह दांत का पड़दा रखना। २ किसीको व्याज पर द्रव्य देने के बाद उसकी उघराणी न करना। ३ बंधन में पड़ी हुई स्त्री को मारना। ४ भोजन मीठा ही करना। ५ सुख से ही सोना।६ गांव-गांव घर करना।७ दरिद्रावस्था आने पर गंगातट खोदना (८) ऊपर कही हुई बात पर कोइ संशय आवे तो पाटलीपुत्र नगर में जाकर वहां सोमदत्त श्रेष्ठी नामक मेरा मित्र रहता है, उसको पूछना।' मुग्ध ने पिता का यह उपदेश सुना, किन्तु इसका भावार्थ उसके ध्यान में न आया। आगे जाकर मुग्धश्रेष्ठी को बड़ा खेद हुआ। उनका आयुष्य पूर्ण हुआ। मुग्ध ने भोलेपन में सर्व द्रव्य खो दिया। स्त्री आदिको वह अप्रिय लगने लगा तथा लोगों में इसकी इस प्रकार हंसी होने लगी कि, 'इसका एक भी काम सिद्ध नहीं होता। इसके पास का द्रव्य भी खुट गया, यह महामूर्ख है' इत्यादि। अंत में मुग्ध पाटलीपुत्र नगर को गया व सोमदत्त श्रेष्ठी को पिता के उपदेश का भावार्थ पूछा।
सोमदत्त ने कहा, '१ सर्व जगह दांत का पड़दा रखना अर्थात् सबसे प्रिय व हितकारी वचन बोलना। २ किसी को व्याज पर द्रव्य उधार देने के बाद उसकी उघराणी न करना अर्थात् प्रथम से ही अधिक मूल्यवाली वस्तु गिरवी रखकर द्रव्य देना कि जिससे देनदार स्वयं आकर व्याज सहित द्रव्य वापिस दे जाये।३ बंधन में पड़ी हुई स्त्री को मारना अर्थात् अपनी स्त्री के जो संतान हो गयी हो तभी उसको ताड़ना करना। यदि ऐसा न हो तो वह ताड़ना से रोष में आकर पियर अथवा अन्य कहीं चली जाय अथवा कुएँ में पड़कर या अन्य किसी रीति से आत्महत्या कर ले। ४ भोजन मीठा ही करना, अर्थात् जहां प्रीति तथा आदर हो वहीं भोजन करना, कारण कि, प्रीति व आदर यही भोजन की वास्तविक मिठास है। अथवा भूख लगे तभी खाना जिससे सभी मीठा लगे। ५ सुखपूर्वक ही सोना अर्थात् जहां किसी प्रकार की शंका न हो वहीं रहना ताकि वहां सुख से निद्रा आये। अथवा आंख में निद्रा आवे तभी सोना, जिससे कि सुखपूर्वक निद्रा आये। ६ गांव-गांव घर करना अर्थात् हर गांव में ऐसी मित्रता करना कि, जिससे अपने घर की तरह वहां भोजनादि सुख से मिल सकें।७ दरिद्रावस्था आने पर गंगा तट खोदना अर्थात् तेरे घर में जहां गंगा नामकी गाय बांधी जाती है वह