SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 193
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 182 श्राद्धविधि प्रकरणम् भेद हो जाते हैं। प्रत्येक मनुष्य की शिल्पकला एक दूसरे से पृथक् होने से पृथक्-पृथक् गिनी जाये तो अनेकों भेद हो जाते हैं। आचार्य के उपदेश से हुआ वह शिल्प कहलाता है। उपरोक्त पांच शिल्प ऋषभदेव भगवान् के उपदेश से चले आ रहे हैं। आचार्य के उपदेश बिना जो केवल लोकपरंपरा से चला हुआ खेती, व्यापार आदि हैं वह कर्म कहलाता है। सिद्धांत में कहा है कि- आचार्य के उपदेश से हुआ वह शिल्प और उपदेश से न हुआ वह कर्म कहलाता है। कुंभार का, लुहार का, चित्रकार का इत्यादि शिल्प के भेद हैं। खेती, व्यापार आदि कर्म के भेद हैं। खेती, व्यापार और पशुरक्षावृत्ति ये तीन कर्म यहां प्रत्यक्ष कहे, शेष कर्मों का प्रायः शिल्पआदि में समावेश हो जाता है। पुरुषों की तथा स्त्रियों की कलाएं कितनी ही विद्या में तथा कितनी ही शिल्प में समा जाती हैं। कर्म के सामान्यतः चार प्रकार हैं। कहा है कि उत्तमा बुद्धिकर्माणः करकर्मा च मध्यमः । अधमाः पादकर्माणः, शिरःकर्माऽधमाधमः ॥ १ ॥ बुद्धि से कर्म (कार्य) करनेवाले उत्तम, हाथ से कर्म करनेवाले मध्यम, पैरों से कर्म करनेवाले अधम और मस्तक से (बोझा उठाकर ) कर्म करनेवाले अधमाधम जानना । बुद्धि से कर्म करने के ऊपर दृष्टांत कहते हैं। बुद्धि का व्यापार : चंपानगरी में मदन नामक धन श्रेष्ठी का पुत्र था। उसने बुद्धि देनेवाले लोगों की दुकान पर जाकर पांचसो द्रम्म दे एक बुद्धि ली कि, 'दो जन लड़ते हो वहां खड़े नहीं रहना।' घर आया तब मित्रों ने उसकी पांचसो द्रम्म की बुद्धि सुनकर खूब हंसी की, तथा पिता ने भी भला बुरा कहा । जिससे मदन बुद्धि वापस करके अपने द्रम्म लेने के लिए दुकानदार के पास आया। दुकानदार ने कहा कि, 'जहां दो जनो की लड़ाई चलती हो वहां अवश्य खड़ा रहना ।' यह तू स्वीकार करता हो तो तेरे द्रम्म लौटा दूं । मदन के स्वीकार करने पर दुकानदार ने पांचसो द्रम्म वापिस दे दिये। एक समय मार्ग में दो सुभटों का कुछ विवाद हो रहा था, तब मदन उनके पास खड़ा रहा। दोनों सुभटों ने मदन को अपना-अपना साक्षी बनाया। अंत में न्याय के समय राजा ने मदन को साक्षीरूप में बुलवाया। तब दोनों सुभटों ने मदन से कहा कि, 'जो मेरे पक्ष में साक्षी नहीं देगा, तो तेरी मृत्यु निकट ही समझना।' इस धमकी से आकुल-व्याकुल हो श्रेष्ठी ने अपने पुत्र की रक्षा के निमित्त एक करोड द्रम्म खर्च करके बुद्धि देनेवालों के पास से एक बुद्धि ली कि, 'तू तेरे पुत्र को पागल जाहिर कर' तदनुसार करने से धन श्रेष्ठी सुखी हुआ...' इत्यादि । व्यापार आदि करनेवाले लोग हाथ से काम करनेवाले हैं। दूत आदि का काम करनेवाले लोग पैरों से काम करनेवाले हैं। बोझा उठानेवाले आदि लोग मस्तक से काम करनेवाले हैं।
SR No.002285
Book TitleShraddhvidhi Prakaranam Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherJayanandvijay
Publication Year2005
Total Pages400
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy